Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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Sts :.. Tara
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सिलीयपण्णती [गाया : १०६४-१०६८
तप्त-तप-ऋतितत्ते लोह - काहे, परिवंदु - क जीए भुत्तम् ।
झिम्मावि चाहिं सा, णिय - झाणाएहि सप्स - तवा ॥१०६४॥
मर्च :-जोहेको तप्त काड़ाहीमें गिरे हुए जल-कणके सदृश जिस ऋषिसे खाया हुआ अन्न धातुमों सहित क्षोण हो जाता है ( मल-मूत्रादिक्प परिणमन नहीं करता ) वह निज ध्यानसे उत्पन्न हुई तप्त-तप-ऋद्धि है ।।१०६४।।
महातप-ऋद्धिमंबरपति • पमुहे, महोववासे' करेवि सव्ये वि।
पत्र - सम्पाण - बलेणं, 'जीए मा महातवा रिखी ।।१०६५।।
प:-जिस ऋद्धिके प्रभावसे मुनि चार सम्यगानोंके बससे मन्दर-पंक्ति-प्रमुख सब हो महान उपवासोंको करता है, वह महातप कति है ।।१०६५।।
घोर-तप-ऋद्धिजर - सूल - प्पमुहाणं, रोगेणचंत-पीरि-नंगा' लि।
साहति दुद्धर - तवं, जीए सा घोर - तब - रिशो॥१०६६।।
पत्र :-जिस ऋविक मलसे स्वर एवं शूलादिक-रोगसे शरीरके अत्यन्त पीड़ित होने पर मी साघुजन दुद्धर-तपको सिद्ध करते हैं. वह पोर-तप-ऋद्धि है ।।१०६६।।
घोर-पराकम-तप-ऋषि . णिवषम-वड्वत-सवा, तिहबा-संहरण-करण-सत्ति-जुना । कंटय-सिग्गि-पव्यय-मुक्का-पहरि - वरिसण-समस्या ॥१०६७।। सहस सि सयल सायर-सलिलप्पोसम्स सोसण-समत्वा । नाति जीए" मुणिणो, घोर परक्कम-सब सि सा रिती ॥१०६८।।
प. उ.
१. द. , क. M. य. उ. महोपासा। २.८. च. क.अ. प. उ. गोरे। ३. स.ब.क. ४.१.व.क.ब.प. स. गोवे। ५.... क. ज. य... जिय।।
अंगो।