Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपाती
[ गापा : १२-१०५
मनःपर्ययज्ञान ऋद्धि
चितियमविलियंबा, '' चिसियमय - मेय - गयं ।
बाबईपर-सोए, विष मनपस मार्ग
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। ममपजामागं गये। अर्थ :-मनुष्य खोकमें स्मिस अनेक भेद रूप चिन्तित, अधिन्तित अथवा अविन्तित पदापोंको सो जान जानता है बह मनःपर्य यशान है ।१६८२।।
। मनःपयशान का वर्णन पूर्ण हुमा ।।
केवलज्ञान
उपविदु-सयल-भाषं, लोयालोएस तिमिर - परिचरां । केबलमखंड - मे, केवपणानं भगति 'विमा ||३||
केवलणा गवं । बर्ष:-जो ज्ञान प्रतिपक्षीसे रहित होकर सम्पूर्ण पदापीको विषय करता है, लोक एवं अलोकके विषयमें अज्ञान-तिमिरसे रहित है, केवस ( इन्द्रियादिक की सहायतासे रहित ) है पौर प्रचण्ड है, उसे जिनेन्द्रदेव केवलज्ञान कहते है ।।१३।।
1 केवलशान का वर्णन पूर्ण हमा ।
बीजमुशिबोरविय • सबणाणावरगान बोरयंतरायाए । तिविहाणे पयोग, उसस्स - सोकसम - विवस III संखेन • सम्यागमहागं तस्य लिग - संवतं । एक चिय बीजपवं, लसूण गुरुपदेसे ॥१८॥
....... .. य. . प्रत्यनिता य। २... उ. मिणा
। ३. ब. क. म. 4. गरिय ।