Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया:१०३२-२०३४
तिलोधपमाती बादिरव-वधि
समकाबि पि विपासं, बहुवादेहिं गिरासरं कुभदि । पर - दबा' गसर, बीए पाविस : बुटीए ।।१०३२।।
पारित-रिवो-गा।
प्रम:-जिस ऋद्धि द्वारा मास्यादिक ( या शक्रादि ) विपक्षियों को भी बहुत मारो वादसे निरुप्सर कर दिया जाता है और परके द्रव्योंको गोषणा ( परीक्षा) की जाती है (या दूसरों के हित अपवा दोष दे जाते हैं) वह वादिस्य बुद्धि-ऋद्धि कहलाती है ।।१३२॥
मादिस्व-बुद्धि-खिका कपन समाप्त हुआ। ।। इसप्रकार बुदि-ऋद्धिका कपन समाप्त हुभा ॥
विक्रिया ऋद्धिके भेद एवं उनका स्वरूपअणिमा-महिमा-सपिमा-गरिमा-पत्ती य तह पाकम्मं । ईसत - मिसा', अप्परिधावतमामा य॥१०३३॥ रिद्धी । कामख्या, एवं हि विविह - मेएहि । रिडि - विकिरिया प्रामा, समणानं तव - बिसेसेणं ॥१०३४॥
प:-अणिमा, महिमा, तधिमा, गरिमा, शप्ति, प्राकाम्य, ईयत्व, वशित्व, मप्रतिपात, अन्तर्धान और कामरूप, इस प्रकारके भनेक भेदोंसे युक्त विकिया नामक ऋद्धि तपो-विशेषसे श्रमणोंके हुआ करती है ।।१०३३-१०३४।।
[पर निदा ].
२.., तर पप्पकाम । ३.३. पहा प्रपाकाम।
१.८..क.
ब.उ.वसताई