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________________ २९६ ] तिलोयपाती [ गापा : १२-१०५ मनःपर्ययज्ञान ऋद्धि चितियमविलियंबा, '' चिसियमय - मेय - गयं । बाबईपर-सोए, विष मनपस मार्ग | । ममपजामागं गये। अर्थ :-मनुष्य खोकमें स्मिस अनेक भेद रूप चिन्तित, अधिन्तित अथवा अविन्तित पदापोंको सो जान जानता है बह मनःपर्य यशान है ।१६८२।। । मनःपयशान का वर्णन पूर्ण हुमा ।। केवलज्ञान उपविदु-सयल-भाषं, लोयालोएस तिमिर - परिचरां । केबलमखंड - मे, केवपणानं भगति 'विमा ||३|| केवलणा गवं । बर्ष:-जो ज्ञान प्रतिपक्षीसे रहित होकर सम्पूर्ण पदापीको विषय करता है, लोक एवं अलोकके विषयमें अज्ञान-तिमिरसे रहित है, केवस ( इन्द्रियादिक की सहायतासे रहित ) है पौर प्रचण्ड है, उसे जिनेन्द्रदेव केवलज्ञान कहते है ।।१३।। 1 केवलशान का वर्णन पूर्ण हमा । बीजमुशिबोरविय • सबणाणावरगान बोरयंतरायाए । तिविहाणे पयोग, उसस्स - सोकसम - विवस III संखेन • सम्यागमहागं तस्य लिग - संवतं । एक चिय बीजपवं, लसूण गुरुपदेसे ॥१८॥ ....... .. य. . प्रत्यनिता य। २... उ. मिणा । ३. ब. क. म. 4. गरिय ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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