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गामा : १८६-६८६ ] उत्यो महाहियार
[ २९७ सम्मि पवे माहारे, सयल • सुब चितिम्ण' गेहेरि । कस्स वि महेसिजो जा, पुरी सा गोज - बुद्धि ति ॥६॥
।बीज-बुद्धी समत्ता। प:-नोन्दियावरण, श्रुतशानावरण और वोर्यानराय इन तीन प्रकारको प्रकृतियों के उस्कृष्ट क्षयोपशमसे विशुर हुए किसी भी महषिकी जो बुद्धि संख्यात-स्वरूप शम्दोंके मध्य मेंसे लिङ्ग सहित एक ही वीयभूत पदको गुरुके उपदेशसे प्राप्त कर उस पदके पाषयसे सम्पूर्ण श्रुतको विचार कर ग्रहण करती है. वह बीज-बुद्धि है ।।६-४-१८६||
। योज-सुशिको वर्णना समाप्त हुई।
कोबुद्धिउपस • धारणाए, जुसो पुरिसो गुरुयोसेन । गागामिह • गंपेम", विस्थारे लिंग - सह - बोनाणि ।।७।। गहिऊग निय-मवाए, मिस्सेण विना परेवि मवि-कोर्ट। जो होगि तस्स बुद्धी, गिट्टिा कोट्ट - बुद्धि ति IIEEEIN
कोट-सुद्धौ' गवा। म:-उत्कृष्ट धारणासे युक्त जो कोई पुरुष ( ऋषि ) गुरुके उपदेशसे नाना प्रकारके अन्योंमेंसे विस्तार पूर्वक लिन सहित शब्दरूप बीजोंको अपनी बुद्धिसे ग्रहण कर उन्हें मिधरपके बिना बुद्धिरूपी कोठमैं धारण करता है, उसकी बुद्धि कोष्ट-बुद्धि कही गई है ॥९८७-८८||
। कोष्ठ बुद्धिको वर्णना समाप्त हुई 1 पदानुसारिणो बुद्धिके भेर एवं उनका स्वरूपपुयो बियस • गाणं, पदानुसारी हवेदि तिमियप्पा । अणुसारो पहिसारी, जहत्व - भामा उभयसारी HERE)
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१. प. प. प. . च. निसियारणं। २. ८. कित्येसु बिस्वो लिन सच बोजागि। 1.द.व. क. प. य. उ.कोमुदिई ।