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________________ २२८ ] azesसिलोयपष्णुची प्राथERPREE :-विशिष्ट प्रानको पदानुसारणी बुद्धि कहते है । उसके तीन भेद हैं--अनुसारणो, प्रतिसारणी और उभयसारणी ! ये तीनों बुद्धियां यमाय नाम वासी हैं। .. आदि - अवसान - मासे, गुरुवदेसण एक-चौबन्पर्व । गेव्हिय सरिम-गंध, जा गिहदि सा मवी हु अणुसारी IIEI . . । अनुसारो गदा ! , । यो बुद्धि मावि, मध्य एवं अन्समें गुरुके उपदेशसे एक बीज पदको ग्रहण करने . उपरिम ग्रन्थको ग्रहण करती है वह अनुसारणी बुद्धि कहलाती है HREST .. .::., : : अनुसारणी बुद्धि को वर्णमा समाप्त हुई। मादि-अवसाण-मज्झे, गुरुपवेसेण एक - बीज - एवं । गेव्हिय हेहिम - गंप, मुरझवि डा सा +, पडिसारी ILE१॥ . .. . . . . ।पडिसारी गा। .. : कर प्रर्ष :-गुरुके उपदेयसे आदि, मध्य अथवा अन्तएक बीज पदको ग्रहण करके जो बुद्धि मधस्तन ग्रन्थको जानती है। वह प्रतिसारणी बुद्धि कहलाती है ।।६६१॥ ।प्रतिसारणी बुद्धि को वर्णना समाप्त हुई। णिपमेग मनिपमेन य, सुगवं एगस्स बोज - सइस्स । जरिम - हेडिम - गचं, जा' मा उभयसारी सा IIEE२| . ... . . . । उ मलारी गा । । एवं पदानुसारी गया । प्र :-जो बुद्धि नियम प्रथवा अनियमसे एक चीज-शब्दके (पहरण करने पर ) उपरिम और अधस्तन ग्रन्थको एक साथ जानती है, वह जयसारणी बुद्धि है ||१९|| । - । । समय-सारणी युक्षिका कमन समाप्त हुआ। : . . । इसप्रकार पदानुसारगो बुद्धिका कथन समाप्त हुआ। ..- -. ......ब.क.स य. उ.भो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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