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________________ गाया : ६५-६६७ वउत्था महायारा | २६ सम्मिन्नश्रोतृत्व-युद्धि-ऋद्धिसोविरिय' - सुदरखाणावरमाणं बोरियतरायाए । उपकस्म - लबोबसमे, उविरंगोवंग - णाम - कम्मम्मि ६६३|| सोदुमकरस · विवादो, बाहिं संखेन - जोयग-पएसे । संठिय - रणर- सिरियागं, बहुयिह - सद्दे समुत्पते ॥६६४|| अक्सर • मणक्सरमए, सोपूणं बस - बिसात पसे । विदि परिषपर्ग, संघिय संभिग्ग - सोवित १९५|| । संभिषण-सोविस गवं । म:-श्रोत्रेन्द्रियावरण, श्रुतमानावरण और वीर्यान्तरायका उत्कृष्ट क्षयोपशम तथा अलोपाङ्ग मामक्रमका उदय होनेपर श्रोत्र-इन्द्रियके सस्कृष्ट वेवसे नाहर दसों दिशाओं में संख्यात योजन प्रमाण क्षेत्र स्थित मनुष्य एवं तिब्दोंके प्रभारानमारात्मक बहुत प्रकारकै उठने वाले तन्दों को सुनकर जिससे प्रत्युसर दिया जाता है, वह संभित्रयोदृस्य नामक वृद्धि-द्धि कहलाती है IHREE-E1 । संभित्रोतृस्व-बुद्धि ऋद्धिका कथन समाप्त हुआ। दूरास्वादित्व-धिविभिषिय - सुवणागाबरणाणं गीरिर्पतरायाए । उपास्स - सबोवसमै सजिग्गोवंग • गाम - कम्मम्मि IIE६६॥ जियसुबकास-सिवोदो, माहि संज-जोयन-ठियारां । विदिह - रसागं सावं, माणइ दूर - सारित ॥६७|| । दूरसावित गर्द। मई:-जिह्वन्द्रिवावरण, श्रुतशानावरण और वीर्यान्तगयका उत्कृष्ट क्षयोपशाम तथा मङ्गोपाल नामकर्मका उदय होने पर ओ जिह्वाइन्दिरके उस्कृष्ट विषय-क्षेत्र से बाहर संध्यात योजन १.प.अ. प. उ. सोविण ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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