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महाहियारो
बुद्धो - विकिरिय' - किरिया, तब बाल-ओसहि-रसविलीरियो । एवासु बुद्धि रिद्धी,
गाया : ९७७-६८१]
ओहि भगपन्नानं, केवलनाची षि बीज - बुद्धी थे । पंचमया कोटूमई, पदानुसारित
च पस्तं
संभिण्णस्सोवित', दूरस्साद राधान दूरस्वणं तह दूरवंसणं
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१.. मक्किरि ।
बुद्धि वादिसं ॥६६०||
दस-चोट्स पुष्विस निमित्त रिद्धीए सत्य कुसलत ं । पनसमाहियाणं, कमसो पय :- १ बुद्धि, २ विक्रिया, ३ क्रिया ४ तप ५ बल, ६ औषधि, ७ रस और क्षिति ( क्षेत्र ) के भेदसे ऋद्धियां प्राठ प्रकारको हैं ।
बायको
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[ २९५
इनमेंसे बुद्धिऋद्धि- १ अवधिज्ञान, २ मन:पर्ययज्ञान, ३ केवलज्ञान. ४ बीजवुद्धि, ५ को मति, ६ पदानुसारित्व ७ संभितश्रोतृत्व, दूरास्वादन. ६ दूरस्पर्श, १० दूरभाण, ११ दूरवरण, १२ दूरदर्शन, १३ दसपूदित्व, १४ चौदह-पूविश्व १३ निमित्तऋद्धि इनमें कुशलता, १६ प्रज्ञाश्रमरा, १७ प्रत्येक बुद्धित्व और १८ वादिश्व इन अठारह भेदोंसे विख्यात है ।। ६७७-१६० ।।
बुद्धि ऋद्धियोंके अन्तगंत अवधिज्ञान ऋद्धिका स्वरूप
अंतिम संवंताई परमाणु हृवि मुत्ति दव्वाइं । जं पच्चवलं जाण, तमोहिगाणं ति पावव्वं ॥ ६८९ ॥
| ओहिणानं गदं ।
ठ्ठ ६७८ ।।
च ।
चेव ।।६७६॥
म
: जो (देश) प्रत्यक्ष ज्ञान अन्तिम स्कन्ध- पर्यन्त परमाणु मादिक मूर्त int जानता है उसको अवधिज्ञान जानना चाहिए । ६८१ ॥
। षज्ञानका वर्णन पुर्ण हुआ ।
२. द. ताई, क. अ. म. उ. बताई।