Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपम्पत्ती [ गाथा : ९०४-६०० Eenata .. अरशद की रिहति हुन्छ हात्तो कार ARE 'चउरंगुलतराले, उरि सिंहासनागि मरहता।
पेटुति 'गयण - मग्गे, लोयालोय -प्पयास - मतंहा IE०४||
म:-लोक-अलोकको प्रकाशित करने के लिए सूर्य सदृश भगवान् परहन्तदेव उन सिंहासनोंके ऊपर प्राकाशमार्गमें घार अंगुलके अन्तरालसे स्थित रहते हैं ।।१०४॥
जन्म के इस अतिशयगिस्पतं हिम्मत - गसतंदुरु - पवल - कहिरत । आदिम - संहापत, समचउरस्संग - संठाणं ॥५॥
अणुपम • रूवसं एव - पय-वर सुरहि - गंध-धारित। अप्सर-पर-सक्सण-सहस्स-धरणं प्रबल - पिरियं ॥६०६॥
मि-हिव-मधुरालाओ, साभाविय-अदिस बह-मेवं । एवं तिस्पयरगं सम्मागहनापि - उम्पन IIEO||
मपं:-१ खेद-रहितता. २ निर्मल-शरीरता, ३ दूध सहशा धवल हघिर, ४ बर्षभनाराच. संहनन, ५ समचतुरन-शरीर संस्थान, ६ अनुपम रूप, ७ नवीन चम्पक की उत्तम गन्ध सहर गन्धका धारण करमा, ८ एक हजार आठ उत्तम मसणों का धारण करना, अनन्त बस-वीर्य और १० हितकारी मृदु एवं मधुर भाषण, ये स्वाभाविक प्रातिपयके दस भेद है। ये अतिशय नीपंकरोंके जन्मप्रहणसे ही उत्पन्न हो जाते हैं ।।६०५-६०७॥
केवलज्ञान के ग्यारह अतिशयजोयण-सव-मक्यावं, मुभिवसावा चउ-विसासु गिय-सागा । णहपल - गमाचहिंसा, भोयग - उबसग • परिहोणा 1800
१.स.स.क. अ. प. उ. पतरणुसंतरामो। २. प. प. पण ।