Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१४. ]
तिलोयपमरातो
[ गाया : ४८४-४५८ । दं ६०० । प............। प्रबं:-उसके शरीरको ऊंचाई यह सौ धनुष, गरीरका वर्ण उत्तम स्वर्ण सदृश पोर मासु दस हजार करोड़ से भाजित पल्योपम प्रमाण थी ।।४८३।।
निरुवम-लावण-सुवा, तस्स म घेवो महाबो-गामा । तरकाले अबिसोद, होवि तुसारं च पविवाऊ ॥४४॥ सीवाणिस-'फासाशे, अवदुक्खं पाविण भोगणरा । चंदायी - मोदि - गणे, सुसार - छन् ण पेच्छति ॥४५॥
भोगागि-हाणीए, बाबो कम्मरिखो "निमम ॥४६॥
पर्ष :-उस ( कुलकर ) के अनुपम लावण्य युक्त प्रभावती नामकी देवो यो । उस कालमें थीत बढ़ गई थी, तुषार पाने लगाया और अति वायु चलने लगो पो । शीतल वायुके से अत्यन्त दुःख पाकर भोगभूमिज मनुष्य तुषारसे आच्छादित चन्द्रादिक ज्योतिषगणको नहीं देख पाते थे। इस कारण अत्यन्त भयको प्राप्त उन मोगभूमिज पुरुषर्षोंको पन्द्राम कुसकर यह दिव्य उपदेश देता है कि भोगभूमिको हानि होने पर अब कर्मभूमि निकट मा गई है ।।४८४-८६||
कासस्स विकारारो, एस सहाओ पयट्टो पियमा ।
नासा तुसारमेयं, एहि मसंड - फिरोह ॥४७॥
प्रयं:-कालके विकारसे नियमतः यह स्वभाव प्रवृत्त हुया है। अब यह तुषार सूर्यको किरणोंसे नष्ट होगा ॥४८७।।
सोदूरग तस्स ययगं, से सम्बे भोगमूर्मिजा मापा ।
रवि - किरकासिब-सीरा, पुत-कसत्तहिं नीति IIvarli
पर्ष :-उस (कुलकर ) के वचन सुनकर वे सब भोगभूपिक मनुष्य सूर्यको किरणोंसे शीतको नष्ट करते हुए पुत्र-कलत्रके साथ जोषित रहने लगे ।।४८८॥ - - --- - ---. .. - - -.-.-.
१. द.प. य. पासादो। २, द. ३. क... एपदा, प, एएस, म. शाएवा। . प.ब. क. प. म. द. रविकिरमासरसीदो।
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