Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाना : ६७९-६८२
वजरथो नाहियारो
पारा के दिन होने वाले पञ्चाश्चर्य
सम्मान पारण-विणे, निवड घर-रयण-परिसमंबरयो । पण घण व बहल, जे अबरं सहस्स मागं च ।। ६७६॥
। १२५०००००० | १२१००० ।
प :- पारा के दिन ( सब दाताओंके यहां ) माकावासे उत्तम रहनोंकी वर्षा होती है, जिसमें मधिसे अधिक पांचके घन ( १२५ ) से गुणित दस लाख । १२५०००००० ) प्रमाण और कमसे कम इसके हजार भाग ( १२५००० ) प्रमाण रत्न बरसते हैं ॥ ६७९
वत्ति-विसोहि बिसेसोच्मेद- णिमित्तं सुरयच - उट्ठीए ! वार्थ श्री अजि वार्यात तु दुहाओ दया जलवाह प्रतरिया ॥६६०।।
:-दान-विशुद्धिकी विशेषता प्रकट करने के निमित देव मेयोंसे मन्तहित होते हुए रनवृष्टि पूर्वक दुन्दुभी ( बाजे ) बजाते हैं । ६८० ॥
पसरह दाणुग्घोसो, वादि सुगंधो सुसीयलो पबणो । विव्व-कुसुमेहि गमनं वरिस इम पंच-नोज्जानि ॥ ६६१||
वर्ष :-उस समय दानका उद्द्घोष ( जय-जय शब्द ) खता है. सुगन्धित एवं शीतल वायु चलती है और आकाशसे दिव्य फूलोंकी वर्षा होती है। इसप्रकार ये पाश्चर्य होते हैं ।। ६८१||
तीरोंके छद्मस्य कालका प्रमाण
सहस्स- वारस
उद्दसरसा ।
सहावसुवासा, जीत वुमस्थ - कालो, चस्त्रिय' पउमच्यहे मासा ।। ६६२ ।।
| बासा १००० | १२ | १४ | १० | २० | मा ६ ।
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१. ध.व.क. ज प 1. T. G. E. X, 4, 7, starfa 1 रा. मुम्बइ।
. . .
४. ब. क. उ.
पुरा । २.
पट्ट, ज. य
सुगंदा, क.प्र. म. सुगंधो।
५.
. . . प. य.