Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१४२ ]
मध्यमा ।
तिलोयपण्णत्ती
कालस्स विकारादो, आपसमा होरि तुम्ह कम्म-मही 1 उतारह नूधरेसु सोबाने ॥४३॥
'मावावीहि गढीगं
कान चलह तुम्हे, सोडूरण तस्म वयणं,
।
भावहरूणच तुंग सेले
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उतरिय वाहिणीम्रो विनिचारिव बरिसामो, पुत कलह जोति ||४९५ ॥
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:- कालके विकारसे अब कर्मभूमि तुम्हारे निकट है। अब तुम लोग नदियोंको नौका आदिसे पार करो, सीढ़ियोंसे होकर पहाड़ों पर चलो ( चढ़ो ) और वर्षाकालमें छत्रादि धारण करो। उस कुलकरके वचन सुनकर वे सब भोगभूमिज मनुष्य नवियों को उतर कर, उत्तुङ्ग पहाड़ों पर चढ़कर और वर्षाका निवारण करते हुए पुत्र एवं के साथ जीत रहने लगे ।।४६३- ४६४ ।।
प्रसेनजित् कुलकरका निरूपण
देवे तिदिव-गदे, अड-कोडी-समय- भजिए-पल्लम्म । अंतरि "पसेनजिन्नाम तेरसमो
चप्पकमवि
पाउस कालम्मि बरह छाई । सच्चे ते भोगभूमि तरा ॥ ४६४||
रासके पश्चात् प्रसेनजित् नामक तेरहवाँ कुलकर उत्पन्न होता है ॥ ४६ ॥
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प ८०००००००००००० |
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अर्थ:-मरुदेव स्वर्गस्थ हो जाने पर आठ लाख करोड़ से भाजित पत्य- प्रमाण मन्त
[ गापा ४६३-४९७
कामीयर-सम-'बन्नो, बस-व-पावन्त्र-वाम-उच्छे हो ।
वस - कोडि सबल भाजिद पलियोबममेस - परमाऊ ||४६७॥
* 120 140............ I
10000
1.ब. गामादोरा । १. ८. न.
४. व. ४.क.ज. प. उ.रंग
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४६६॥
ज. प. च.
५. ८.
तुम्ही । ३.३.म.क. ज. प. उ. विष्णाम | ६ व... न. र.