SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ ] तिलोयपणासी [गाथा : २१६-२१९ is ... TER Kार ? पर्व: पांचसो तेईस योजन और आठसे गुणित ( उन्नीस) सर्थात् एकसौ बावनमेंसे उनलाल भाग १०५२१६ - ५२३,३६ योलन ) प्रमाण दक्षिणसे पाकर गङ्गा नदी पर्वतके तटपर स्थित गिलिकाको प्राप्त होती है ।।२१।। हिमबंत-अंत-मणिमय-पर-कूड-मुहम्मि पसह - स्वम्मि। पविसिप णिवाइ'पारा, दस-जोयन-नित्यरा य ससि-भवला ।।२१६।। प्राय:-हिमवान् पर्वतके अन्तमें वृषभाकार मणिमय उत्तम फूट के मुबमें प्रवेशकर गंगाकी चन्द्रमाके समान भवत और दस योजन विस्तारवाली धारा नीचे गिरती है ॥२१॥ छल्लोयमेषक - कोसा, पनालियाए हवेवि दिक्वंभो' । 'आयामो में कोसा, तेरियमेरी च बहलसं ॥२१॥ || ६ । को १ । को २ । को २ ।। मर्ष:- उस प्रणालीका विस्तार छह योजन और एक कोस (योजन ), लम्बाई दो कोस भौर गहल्य भी इसना ( दो कोस ) ही है ॥२१॥ • "सिंग-मुहकाण-जोहा-लोयग-मूवाविएहि' गो-सरिसो। वसहो ति तेच भन्ना, रयणमई जीहिया तत्प ॥२१८t पर्व':- वह प्रणाली सींग, मुख, कान, जिह्वा, लोचन ( नेष) और भृकुटि मादिकसे गौके सदृश है, इसीलिए उस रस्नमय भिमकाको "वृषम" कहते हैं ॥२१॥ पणुवीस' जोपणागि, हिमवते तत्व 'अंतरेतून । बस - भोमन - विस्थारे, गंगा -'कुंडम्मि भिवडये गंगा ॥२१॥ म :-वहाँ पर गंगा नदी हिमवान पर्वतको पच्चीस योजन खोड़कर दम योजन विस्तार वाले गङ्गाकुण्डमें गिरती है ।।२१।। १. क. न. ६, य. उ. रा। २.१.१. य. उ. विमा । .क.ब. म. न. पापामा । ४. ब. क.च. तत्तियमेते। .. प. म. सिंह । .. क. प. य. उ. भूधामोरदिगासारितो। .... पगमोह। ६. क.न.प. उ. अंतरेदूणा। . द...क.ब. य. २. बस्मि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy