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________________ गापा : २१२-२१५ ] बउत्पो महाहियारो पर्य: उस कमलाकार कूटको रत्नमय कणिका एक कोस ऊंची और इतने हो । एक कोस ) विस्तारसे युक्त है । उसके ऊपर मणिमय दिव्य भवन स्मित है ।।२१।। तप्पासादे' गिदसहितरसेगी बत्ति विक्सावा । 'एक - पलिमरोहमालक.... बहर हिसारे त्याना HARTA पर्ष:-उस भवनमें बला ( इस ) नामसे प्रसिद्ध, एक पल्योपम प्रायुवाली और बहुस परिवारसे युक्त व्यन्तर देवी निवास करती है ॥२१२।। गंगा नदीका वर्णनएवं पउम - बहावो, पंच - सया जोपणाणि गंतणं । गंगा-कूरमपत्ता', जोयन - अद्धण दक्खिभापलिया ॥२१॥ भर्ष :- इस प्रकार गङ्गा नदी परदहसे पांचसो योजन आगे जाकर और गंगाकूट तक न पहुंचकर उससे अधं योजन पहिले हो दक्षिण को भोर मुड़ जाती है ।।२१३।। चुल्ल - हिमपंत - र, पहि- सोषिकूण अडकवे । दक्षिण - भागे पव्वर - उपरिम्मि हवेवि णइ - दोहं ॥२१४॥ पपं:-मुद्र हिमवान्के विस्तारमेंसे नदी के विस्तारको घटाकर पशिष्टको आधा करने पर दक्षिण भाग में पर्वतके ऊपर नदीको लम्बाईका प्रमाण प्राप्त होता है ॥२१॥ विशेषा-हिमयान पर्वतका विस्तार १०५२० योजन है और नदीका विस्तार ६१ योजन है। पर्वतके विस्तारमेंसे नदोका विस्तार घटाने पर (1980 - - योजन मवशेष रहे । इनको आधा करनेपर ( ५२३. पोजन हिमवान् पर्वतके ऊपर दक्षिणभापमें गंगा नदीकी लम्बाईका प्रमाण प्राप्त होता है । पंच - समा तेबोस, अनुदा' ऊणतीस - मागा य । पक्लिो भागन्छिप, गंगा गिरि - जिभियं पता ।।२१५।। 1 ५२३ । । । ।प.ब. क. ज. स. तपासाया। २. . ब. क. ब. उ. मासे। ३. र. एमवा । ४. द. ब. क. प. उ. मपत्तो। ... यस्ताविण। ६. प. प्रदहिया, म, क. ज. प. उ. महाविदा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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