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उत्यो महाहिकारो
पमुवीस जोवनाई धाराए' मुहम्मि होदि 'विक्लंभो । "सग्मार्याणि कशारो, एवं नियमा परमेषि ।।२२०॥
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गाथा : २२०-२२२ ]
पाठान्तरं ।
अ :- धाराके मुखमें गंगा नदी का विस्तार पच्चीस योजन है । सम्मायणीके कर्ता इस ( प्रकार ) नियमसे निरूपण करते हैं ||२२० क आर्य श्री सूकी
पाठान्सर |
गंगाकुण्डका विस्तार आदि
जोवन सट्टी बं, समबद्ध अस्थि तस्य वर-कु
इस जोपन उच्छे
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मणिमम सोबाण - सोहिल्लं ।। २२१ ॥
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[ ६५
। ६० । १० ।
प्र:- वहाँ पर साठ योजन विस्तार वाला, समवृत ( गोल ), दस- मोजन गहरा मोर मणिमय सीढ़ियों से शोभायमान उत्तम कुण्ड है ।।२२१||
वासट्टि जोयणाई को कोसा होवि कुंड सग्गायनि कत्तारो, एवं नियमा
। ६२ । को २ ।
विचारों | निरुवेदि ।।२२२ ।।
पाठान्तरं ।
:- उस कुण्डका विस्तार बासठ योजन और दो कोस ( ६२३ यो० ) है, सम्मायणीके कर्ता इस प्रकार ) नियमसे निरूपण करते हैं ।। २२२ ॥
पाठान्तर 1
सम्बाफिला
१. क. वारा, म... दाराप । २. ज. य. उ. भिमा २. निमा । म संगावणे कत्तारो व रु. प्र. उ.माणिकताय । ४.स. ए. उ. उमेवं ।