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________________ ६] तिलोय पण्णत्ती क :-- अर्थ अवर राज च-तोरन-वेदि-वो, सो कुंडो तस्स होति बहुम C chat रमण मिति, वड-तोरण- वेदियाहि कयसोहो ॥२२३॥ अर्थ :- वह कुण्ड चार तोरण और वेदिकासे युक्त है । उसके बहुमध्यभागमें रत्नोंसे विचित्र और चार तोरण एवं वेदिकासे शोभायमान एक द्वीप है || २२३|| २ बस-जोयण- उच्छे हो, सो जल-मम्भम्मि अटु-विस्थारो | होवि बज्जमम - सेलो' ||२२४ ॥ जल-जवार दो कोसो, सम्म | १० | ५ | को २ | वह द्वीप जल के मध्य में दस योजन ऊंचा और पाठ योजन विस्तार वाला तथा - [ गापा : २२३-२२७ जसके ऊपर दो कोस [ ऊंचा है। इसके बीज में एक वामय त स्थित है ।।२२४ ।। गंल एवं उसके ऊपर स्थित प्रासादका वर्णन मूले मज्झे उधर, चउ-युग-एक्का कमेण वित्यिष्णो । दस जोयम-उच्छे हो, चउ-तोरण बेडियाहि कयसोहो ।।२२५ ॥ | ४ | | १ १ १ अर्थ :- उम ( ) का विस्तार मूसमें चार योजन, मध्य में दो योजन और ऊपर एक योजन है । वह दस योजन ऊंचा और चार तोरण एवं वैदिकाने शोभायमान है ।।२२५|| तप्पवयस्स उपरि बहुमके होनि विरुद्ध वर रयण मंथनमत्रो, गंगा डोलि - - :- उस पर्वतके ऊपर बहुमध्यभागमें उत्तम रत्नों एवं स्वर्ण निर्मित और गंजाकूट नामसे प्रसिद्ध एक दिव्य प्रासाद है ।। २२६ । - a, faforg ८. रु. अ. प. स. बस पासादो' । नामेन ॥२२६॥ च - तोरणेहि जुत्तो वर-वेदी-परिगयो विचियरो | बहुविह जंस - सहस्सों, सो पासाबो बिमानो ।।२२७|| १. क. ज. स. सहा २. ६. ज. उ. बिरमारा । मैं. फ. ज. य. . सेसा । ४. क. ए.ए. ५. क. ज. उ. सोहा । ६ क. ज. बाउ पालादी । ७. ८. वय उपरि
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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