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________________ [ ६७ गापा : २२८-२२६] उत्यो महाडियारो भ:-वह प्रासाद बार तोरणों से युक्त, उत्तम वेदीसे घेष्टिन, मतिविचित्र, बहुत प्रकारके हजारों यंत्रों सहित और अनुपम है ।।२२७।। मूले मामे उवार, ति-पु-'-एक सहस्स-का-विश्वारो। वोच्चि - सहस्सोसुगो, सो बोसदि कूब - संकासो ॥२२॥ ।३००० । २००० । १००० । २००० । प्र:--वह प्रासाद मूलमें तीन ( ३०००) हजार, मध्यमें दो (२०००) हजार और ऊपर एक ( १००० ) हजार धनुष प्रमाण विस्तार युक्त है तथा दो { २००० ) हजार धनुष प्रमाण ऊँचा होता हुआ फुट सदृश दिखता है ।।२२८।। तस्सम्भंसर - हरो', पानासम्भहिम - सत्त • सय-चंडा । चालीस - चाव - वासं, असोधि - उपर्व च तद्दार ॥२२६।। ७५० । ४०1०। वर्ष:-उसका अभ्यन्तर विस्तार सातसो पनास ( ७५०) धनुष है तथा वार पालीस ___ धनुष विस्तारवाला एवं अस्सी धनुष ऊंचा है ॥२२६॥ [ सालिका ६ प्रगने पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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