Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ३१३ ]
यथा
अनव
१०००
अनवस्था कुण्ड
चरस्थो महाहियारो
2287
१०० र भरेगा
Į. R. X. 5. X. 4. 3. F [सं-समुद्र-जिएकरे...
६.८. . समेस्वयं तवं ।
१० नरेगा
१ बार
भरेगा
-
[ ६३
एवं सलाय - सरावमा 'पुन्ना, परिससाय सरावया 'पुष्णा, महासलाप - सरावया पुन्ना। यह वोव-समुद्द तिष्णि सरावया पुन्ना तस्संखेन्ज-बोध- समुद्र-बित्यरेा सहस्त लोणागान' ( सराये) सरिसवं भरिये सं उपकस्स संखेज्जयं अदिशिवूপ* जहणपरितासंखेज्जयं गंतूण जहण प्रसंसेक्ानं पडिवं । तयो एगरुवमदनीचे जागमुक्कस्ससंज्जयं । जहि जम्हि संजय मग्गिक्जवि तह तह अब्रहामणुक्रुस्संखेवजयं घेत्तन्वं । तं कस विसओ ? पोल्स - बिस्स |
राज
अर्थ :- इसप्रकार शलाकाकुण्ड पूर्ण हो गये, प्रतिशलाका कुण्ड पूर्ण हो गये और महा शलाका कुष्ट पूर्ण हो गया। जिस द्वीप या समुद्र में ये तीनों कुण्ड पर जाएं उतने संख्यात द्वीपसमुद्रोंके विस्तार स्वरूप प्रोर एक हजार योजन गहरे गड्ढेको सरसोंसे भरदेने पर उत्कृष्ट संख्यातका अतिक्रमण कर जघन्यपरीतासंख्यात जाकर जघन्य प्रसंख्यात प्राप्त होता है । उसमेंसे एक रूप कम कर देनेपर उत्कृष्ट संख्याका प्रमारण होता है। जहां-जहाँ संख्यात खोजना हो वहाँ वहाँ अजघन्यानुस्कूट ( मध्यम ) संख्यात प्रण करना चाहिए। यह किसका विषय है? यह चौदह पूर्वके भारता केसीका विषय है ।
२. . . . उ. तिल सरावया पुग्यो, जह दीप-समू ३. क. ज. य. उ. नवे । Y. <. ufefug
५. क.प. रु. तवा ।