Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाषा: ३१५ ] पडत्यो महाहियारो
[ १५ भोवराशि प्रत्येक शरीर बनस्पति जीव राशिसे प्रसंख्यात गुणो है।) इन पोनों राशियोंका प्रमाण कुछ कम सागरोपम राशिका विरलनकर और उसीको देय देकर परस्पर गुखा करने पर जो राषि उत्पन्न हो उतना है (जो क्रमशः असंख्यात-लोक, पसंक्यात खरेक प्रमाण है)। इन छहों असंत्यातराधियोंको पूर्व (तीन चार वगितसंगित प्रक्रियासे ) उत्पन्न राशिमें मिलाकर पूर्वक सहा पुनः तीन बार वगित-संगित करनेपर भी उत्कृष्ट-असंख्यातासंख्यास उत्पन्न नहीं होता ।
तवा ठिदिबंध - वाणाणि, ठिविबंषज्झवसाय - ठाणाणि, कसायोवय - ठामाभि, अनुभाग-धरझवसाय हांगीण, 'नोगौविभागीण, उस्सपिणि-सिपिनीसममामि प। एगि पक्लिविण पुरुवं व गिरसंवग्गिवं करे तवा उनकस्स-असंखेज्जासंक्षेप अविच्छिवूण जाण - परिसाणतयं गंसूग पडिवं । सबो एगरूवं अभिवे आवं शकस्सअसंखेम्जासंग्त्रयं । जति जम्हि असंखेज्जासंखेजयं 'मगिजदि तम्हि तन्हि जहानमणुक्कस्स-प्रसंसासंबंजय घेत्तवं । तं कस्स विसओ? मोहिमाणिस्स ।
अ :-सब फिर उस राशिम स्थितिवावस्थान, स्थितिवन्याव्यवसायस्थान, कषायोदयस्थान, अनुभाग-बन्धाध्यवसायस्थान, योगों के अविभागप्रतिच्छेद और उत्सपिणी-अवपिणी कालके समय, इन ( छह ) राशियोंको मिलाकर पूर्व सदृश ही वगित-संगित करने पर उत्कृष्ट-असंख्यातासंख्यातका अतिक्रमण कर जघन्य-परीतानन्त प्राप्त होता है। इसमेंसे एक अंक कम कर देनेपर उस्कृष्ट-मसंध्यातासंस्पात होता है । जहाँ-जहा असंख्यातासंख्यातकी खोज करना हो बहान्बहाँ अअपन्यानुस्कृष्ट प्रसंस्थातासंख्यात को ग्रहण करना चाहिए । यह किसका विषय है ? यह भवधि-शानोका विषय है।
उम्स • असंखेबजे, अवरातो हवेरि रुव गये।
ततो पापि 'कालो, केबलगाएस्स परिपंतं ॥३१॥
मर-उत्कृष्ट मसंख्यास ( प्रसंध्यातासंख्यात ) में एक अंक मिला देनेपर जघन्य अनन्त होता है । उसके आगे केवलशान पर्यन्त काल वृद्धिंगत होता जाता है ।।३१५।। ।
जंत अणतं तं तिविहं, परिता सयं, पुसाणतयं, अबंताएंतपं देवि । जत परितार्णतयं तं तिविहं, जहण-परित्तामंतयं, अजहरूपमा कस्स-परिताणतयं, उक्कास
1.ब. जोगपसिसोदाहिए। २ प. ब. स. नगियादि । १. प. प. जुयो। ..प. य. घ. फाला। १, द. ब. क. अ. उ, जुस ।