Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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चढत्यो महाहियारो
आगये श्री सुविि
वत्संगा शितं 'पढचीण- सुवर-शम-यहूदियत्यानि । प्रण- जयणाणंदकर, गाणा- बत्पादि ते वेति ।। ३५० ।।
गाथा : ३५०-३५५ ]
वर्ष :- वस्त्राङ्ग जातिके कल्पवृक्ष नित्य चीनपट ( सूती वस्त्र) एवं उत्तम क्षौम (रेशमी ) आदि वस्त्र तथा मन और नेत्रोंको आनन्दित करने वाले नाना प्रकारके अन्य वस्त्र देते हैं ।। ३५० ।।
सोलस विमाहारं सोमसमेयाणि चोट्सविह सपाई, खज्जाणि सायाणं च पयारे, तेसट्टी संजुवाणि ति सारण । रस मेदा तेसट्ठी, बेंति फुड
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जगाणि पि । विगुणं ।। ३५१ ॥
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भोयगंग - दुमः ॥ ३५२॥
:- भोजनाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष सोलह प्रकारका आहार सोलह प्रकारके व्यञ्जन, चौदह प्रकारके सूप ( दाल आदि ) चउबनके दुगुने ( १०८ ) प्रकारके खाद्य पदार्थ, नोनसी तिरेसठ प्रकारके स्वाद्य पदार्थ एवं तिरेसठ प्रकार के रस भेद पृथक-पृथक दिया करते हैं ।।३५१-३५२ ।।
सस्थिय
गंदावतं, पमुहा जे के वि
दिष्व पासादा । सोलस मेवा रम्मा, देति हु ते आलयंग - दुमा । १३५३ ।।
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[ १०६
अर्थ:-मालयाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष, स्वस्तिक एवं नन्वावतं आदि सोलह प्रकारके रमणीय दिव्य भवन दिया करते हैं ।।३५३ ।।
दबंग-तुमा "साज्ञा पवाल फल - कुसुममंकुराचीहि । दोबा इव पज्जलिवा, पासावे देति उज्जीवं ।।३५४ ।।
अर्थ:-दोपाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष प्रासादोंमें शाखा, प्रवाल, फल, फूल और अंकुरादिके द्वारा जलते हुए दीमकोंके सह प्रकाश देते हैं ।। ३४४ ॥
भाषणभंगा कंचन - बहुरयण विणिम्मियाइ थालाई । भिंगार कलस गरगरि खामर पीडावियं देति ॥ ३५५॥
अ :- भाजनाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष स्वणं एवं बहुत प्रकार के रत्नोंसे निर्मित वाल, भारी, कलवा, गागर, चामर और श्रासनादिक प्रदान करते हैं ||३५५ ||
१. द. व का. य उ परियो । २. ८. सोहा ।