Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मार्यक
गाया : ४२७ ]
त्यो महाहियारो
[ १२५ बेदसे; नित्य सम्पूर्ण कथायोंसे मति श्रुत, अवधि, मति अज्ञान, भूताज्ञान एवं विभंगशान, इन छह शानोंसे सर्व घसंयम; चक्षु, भचक्षु और अवधि इन तीन दर्शनोंसे संयुक्त होते हैं। अपर्याप्त मवस्थामें मिध्यात्व एवं सासादन गुणस्थानोंमें कृष्ण, नील, कापोल इन तीन अशुभ क्याओंसे और चतुरं गुणस्थान में कापोत लेश्या जधन्य अंशों से तथा पर्याप्त अवस्थामें मिध्यात्वादि चारों गुरुस्थानोंमें तीनों शुभ सेवासे युक्त मध्यत्व तथा अभव्यत्वसे औपशमिक, क्षायिक, वेदक, मिश्र, सासादन और मिथ्यात्व इन हों सम्यक्त्वोंसे संयुक्त होतं हैं। संज्ञी शाहारक और अनाहारक होते हैं तथा नियमसे साकार (ज्ञान) और निराकार (दर्शन) उपयोग वाले होते हैं ।।४२१-४२६ ।।
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आचार्य श्री दिन
मंद कसायेन जुवा, उदयागव-सत्य-पर्याज- संजुता ।
विविह दिगोदास, भर तिरिया मोगजा होंति ।।४२७||
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धर्म :- भोग भूमिज मनुष्य और तिथंच मन्दकषायसे युक्त, उदयमें माथी हुई पुष्प- प्रकृतियोंसे संयुक्त तथा अनेक प्रकारके विनोदोंमें आसक्त रहते हैं ॥ ४२७ ॥
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