Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 4
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
आम्रफल ही लानेका नियम कर देनेपर अमरूद, केला आदिके लानेका निषेध कर दिया जाता है । किंतु रुपये में से बचे हुये पैसे या मृत्यके शरीरपर पहिने हुये वस्त्र आदिके ले आनेका निषेध नहीं कर दिया जाता है । क्योंकि आम्र के प्रतियोगी अमरूद, खखूजा आदि हैं । पैसे आदिक तो उसके प्रतियोगी नहीं है । अतः शेष पैसोंके लौटा लानेका निषेध नियम नहीं किया जाता है ।
तद्व्यवच्छेदे भवस्य साधारणत्वात्सर्वेषां साधारणोऽवधिः प्रसज्येत । तच्चानिष्टमेव ।
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भत्रका नियम करदेने पर यदि गुणके समान उस क्षयोपशमका भी एवकार द्वारा व्यवच्छेद कर दिया जायगा, तब तो भवको साधारणकारणपना हो जानेसे सम्पूर्ण भवधारी प्राणियोंके साधारणरूप करके अवधिज्ञान होनेका प्रसंग हो जायगा । किंतु वह सब जीवोंका अवधिज्ञानीपना तो अनिष्ट ही है । अर्थात् - अवधिज्ञानमें भत्र ही को कारण मानकर यदि क्षयोपशमको अन्तरंगकारण नहीं माना जायगा तो सभी संसारी जीवोंके अवधिज्ञान हो जानेका प्रसंग होगा। क्योंकि क्षयोपशम तो कारण माना ही नहीं गया है और सभी अवधिज्ञानोंमें क्षयोपशमको अन्तरंगकारण मान लेनेपर तो जिन जीवोंके क्षयोपशम नहीं है, उनको अवधिज्ञानी हो जानेका प्रसंग नहीं आता है । देवनारकियों के भी अन्तरंग कारण क्षयोपशम विद्यमान है । तभी बहिरंगकारण भवको मानकर सभी देवनारकियों के कमती बढती पाया जा रहा अवधिज्ञान या विभंग हो जाता है । किन्तु चतुर्गतिके सभी जीवोंके अवधिज्ञान हो जाय यह नियम नहीं है ।
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परिहृतं च भवतीत्याह ।
परिवार भी कर दिया गया है। अवधिज्ञान नहीं हो पाता. है 1
दूसरी बात यह है कि सभी जीवोंके अवधिज्ञान होनेका क्षयोपशमनामक अन्तरंगकारण नहीं होनेसे सभी मनुष्य तिर्यंचोंके किन्तु कारणोंकी योग्यता मिलनेपर किन्हीं किन्हीं मनुष्य तिर्यचोंके होता है । देव और नारकियों के मी अन्तरंग कारणोंकी विशेषता हो जानेसे भिन्न भिन्न प्रकारकी देशावधि होती है । इसको स्वयं ग्रन्थकार वार्तिकद्वारा स्पष्ट कह रहे हैं ।
प्रत्ययस्यान्तरस्यातस्तत्क्षयोपशमात्मनः । प्रत्यग्भेदोऽवधेर्युक्तो भवाभेदेऽपि चाङ्गिनाम् ॥ ७ ॥
अन्तरंग में होनेवाले उस अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशमस्वरूप कारणका देव और नारकियों में न्यास न्यारा भेद है । इस कारण देव और नारकी प्राणियोंके साधारण बहिरंगकारण भवका भमेद होनेपर भी भिन्न भिन्न प्रकारका अवधिज्ञान है । अर्थात् - बहिरंग कारण के एकसा होनेपर भी 1 अन्तरंग क्षयोपशमकी जातिका विशेष भेद होनेसे भिन्न भिन्न देवोंमें और न्यारे न्यारे नारकियोंमें अनेक प्रकारका देशावधिज्ञान हो जाता है ।