Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. थु. अ. ३ उ. १ परिषहोपसर्गसहनोपदेशः ३ टीका-'जाव' यावत्-यावत्पर्यन्तम् 'जेयं' जेतारं पति द्वन्द्विनं राजानं 'न पस्सई' न पश्यति प्रतियोद्धारं न पश्यति तारदेव कापुरुषः 'अपाणं' आत्मानम् 'सूरं मण्णई' शूरं मन्यते-न मत्कल्पः परानीके शूरो विद्यते किन्तु शूरोऽहमेव इति मन्यते । यावत् पर्यन्तं समुद्यतायुधं जेतारं युद्धायोपस्थितं पुरतो न पश्यति, तावदेवाऽल्पवीर्यः स्वात्मानं नीर इति मन्यते । तावदेव गजः प्रमृतमदः अकालघनाम्बुदवघोरगजेनं करोति यावत् नखलांगूलमात्रायुधं घटाघटासमन्वितं कंपितकेशरकेशरिणं शब्दायमानं न पश्यति । तदुक्तम् 'तावद्गजः प्रस्तुतदानगण्ड: करोत्यकालाम्बुदगजितानि । यावन्न सिंहस्य गुहास्थलीषु लांगुलविस्फोटरवं शृणोति ॥१॥ टीकार्थ-जप तक विजेता विरोधी राजा को अर्थात् प्रतियोद्धा को नहीं देखता है, तब तक कायर पुरुष भी अपने को शूरवीर समझता है। वह ऐसा मानता है कि शत्रु की सेना में मेरे जैसा कोई धीर नहीं है, एक मात्र में ही वीर हूँ । अर्थात् जब तक शस्त्र ऊँचा उठाये हुए और युद्ध के लिए सामने आये हुए विजेता पुरुष को सन्मुख नहीं देखता है, तभी तक अल्पवीर्य अपने आपको वीर मानता है । मदोन्मत्त हाथी तभी तक वेमौसिम के सघन बादलों के समान घोर गर्जना करता है जब तक नाखून और पूछ मात्र आयुध वाले, सघन अयाल से युक्त केसर को कपाने वाले एवं दहाडते हुए केसरी को नहीं देखता है। कहा भी है-'तावद्गजः प्रस्तुतदानगण्डः' इत्यादि ટીકાઈ– જ્યાં સુધી પ્રતિસ્પધી સાથે લડવાનો પ્રસંગ ન આવે, ત્યાં સુધી કાયર પુરુષ પણ પિતાની જાતને શુરવીર માને છે તે એવું માને છે કે શત્રુની સેનામાં મારા જે પરાક્રમી કેઈ નથી. જ્યાં સુધી તેને સામનો કરવાને માટે કઈ શસ્ત્રસજજ વિજેતા પુરુષ તેની સામે શસ્ત્ર ઉઠાવીને ખડો થતો નથી, ત્યાં સુધી તે અ૯૫વીર્ય પુરુષ પિતાને વીર માને છે. મન્મત્ત હાથી કમોસમી સઘન વાદળાંઓની જેમ ત્યાં સુધી જ ઘેર ગર્જના કરે છે કે જ્યાં સુધી માત્ર નહોર અને પૂંછડી રૂ૫ શસ્ત્રોવાળે, સઘન કેશવાળીથી યુક્ત, કેસરોને કંપાવતે અને ગર્જના કરતા સિંહ તેની સામે ઉપસ્થિત થતો નથી. સિંહને જોતાં જ ते महोन्मत्त हाथी ली धूछो नासी onय छे ४ऱ्या ५५ छ -'तावद्गजः प्रस्तुतदानगण्डः' त्या तुं १५ भ६ ४२पाने ॥२ लातुं ४ For Private And Personal Use Only

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