Book Title: Sutrakritanga Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे अन्वयार्थः -- (जाव) यावत् (जेयं) जेतारं पुरुषं ( न परसइ) न पश्यति तावत्पर्यन्तं कातरोपि (अप्पा) आत्मानं स्वात्मानम् (रं) शूरं संग्रामवीरं ( मन ) मन्यते (जुज्झतं ) युध्यमानम् संग्रामं कुर्वन्तम् (महार) महारथं ( दढधम्मा) धर्माणं नारायणं कृष्णम् (सिसुपालोव्ब) शिशुपाल इव= यथा कृष्णं युध्यमानं दृष्ट्रा शिशुपालः क्षोभमाप्तवानित्यर्थः ॥ १ ॥ सहन करना चाहिए। तीसरे अध्ययन का प्रथम सूत्र यह है-'सूरं मण्णइ अप्पा' इत्यादि । शब्दार्थ - 'जाव - यावत् ' जबतक 'जेयं जेतारम् ' विजयी पुरुष को न परसह न पश्यति' नहीं देखता है तबतक कायर पुरुष 'अप्पाणंआत्मानम् ' अपने को 'सूरं शूरम् ' शूरवीर ' मन्नइ' - मन्यते' मानता है 'जुज्झतं युध्यमानम् ' युद्ध करते हुए 'महार हं- महारथम् महारथी 'दढ धम्माण' - दृढ धर्माणम्' दृढ धर्म वाले-कृष्ण को देखकर 'सिसुपा लोव्व- शिशुपालहव' शिशुपाल जैसे क्षोभ को प्राप्तहुआ था वैसे क्षोभ को प्राप्त होते हैं ॥ १ ॥ अन्वयार्थ - जब तक विजेता पुरुष को नहीं देखता तब तक कायर भी अपने आप को संग्राम शूर मानता है । संग्राम करते हुए महारथी और दृढधर्मा नारोपण (कृष्ण) को देखकर जैसे (पहले गर्जना करनेवाला) शिशुपाल क्षोभ को प्राप्त हुआ || १|| થાય છે. તે ઉપસગે તેણે સમભાવપૂર્ણાંક સહન કરવા જોઇએ, ત્રીજા અધ્યયનનું पहेलु' सूत्र मा प्रमाणे छे. - 'सूरं मण्णइ अप्पार्ण' छत्याहि शब्दार्थ –'जाव - यावत्' नयां सुधी 'जेय - जेतारम्' विभ्यी यु३षने 'न परखइ न पश्यति' लेतेो नथी त्यां सुधी डायर ३५ 'अप्पाणं- आत्मानम् ' पोताने 'सूरं शूरम् ' शूरवीर 'मन्नइ - मन्यते' माने छे. 'जुज्झतं अश्तां 'महारहं - महारथम् ' महारथी 'दढधम्माणं दृढधर्माणम्' हृष्यने लेने 'सिसुपालोव - शिशुपालइव' शिशुपास प्रेम क्षेोभने आप्त थथेो हतो ते क्षोभने प्राप्त थाय छे. ॥ ॥ युध्यमानम्' युद्ध દઢધમ વાળા સૂત્રા—જ્યાં સુધી વિજેતા પુરુષને ભેટો ન થાય, ત્યાં સુધી કાયર પણ પેાતાને સગ્રામશ્ર માને છે. જેવી રીતે સમરાંગણુમાં વીરતાપૂર્ણાંક લડતા મહારથી અને દૃઢધાં નારાયણ (કૃષ્ણ)ને જોઈને (પહેલાં ગુના કરનાર) શિશુપાલ ક્ષુબ્ધ થઈ ગયેા હતેા, (એજ પ્રમાણે ઉપસ અને પરીષહે! આવી પડતાં ઢીલા પોચા માણસા સયમ માર્ગથી વિચલિત થઈ જાય છે) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 729