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( ४७ ) (२५) अभया का प्रेम-प्रस्ताव (२६) उसके प्रेम को स्वीकार करने के सुख (२७) देवों में काम विकार के पौराणिक दृष्टान्त (२८) अभया की लुभाऊ काम-चेष्टाएँ (२९) अभया की सुदर्शन को भर्त्सना (३०) अभया का अन्तिम प्रलोभन और धमकी (३१) सुदर्शन और अभया की विरोधी मानसिक दशाएँ (३२) सम्यक्चारित्र की दुर्लभता (३३) अभया का पश्चात्ताप (३४) अभया का कपट-जाल (३५) पुरुष और स्त्री का चित्तभेद (३६) स्त्री क्या नहीं कर सकती ? (३७) राजा को खबर और उसका रोष (३८) भटों की अपनी-अपनी डींग (३९) खबर पाने पर मनोरमा की दशा (४०) मनोरमा विलाप (४१) वह सुख-संस्मरण (४२) इधर मनोरमा और उधर सुदर्शन का चिंतन (४३) व्यन्तर देव द्वारा सुदर्शन की रक्षा (४४) धर्मध्यान का प्रभाव ।
सन्धि ९ (१) व्यंतर देव की युद्धलीला (२) भट-भार्याओं की वीरतापूर्ण कामनाएँ (३) राजा के सैन्य का भीषण संचार (४) राजा और निशाचर की सेनाओं का संघर्ष (५) संग्राम में उठी धूलिरज का आलंकारिक वर्णन (६) रुधिरवाहिनी का आलंकारिक वर्णन (७) हस्त युद्ध (८) राक्षस और नरेश की परस्पर गर्वोक्तियाँ (९) दोनों मल्लों का युद्ध (१०) निशाचर राजा के हाथी पर आ कूदा (११) फिर दोनों रथारूढ़ हुए (१२) दोनों का रथ युद्ध (१३) निशाचर की पराजय व मूर्छा (१४) निशाचर की विक्रियाएँ (१५) निशाचर और राजा का विक्रियायुद्ध (१६) निशाचर के दुगने दुगने मायारूप (१७) सुदर्शन द्वारा राजा की रक्षा (१८) राजा द्वारा सुदर्शन से क्षमा याचना (१९) राजा का अर्द्धराज्य समर्पण व सुदशन द्वारा अस्वीकार (२०) राजा द्वारा प्रलोभन तथा सुदर्शन का वैराग्य (२१) सुदर्शन द्वारा जीवन की क्षणभंगुरता का निरूपण (२२) संसार की क्षणभंगुरता से पूर्व महापुरुषों में विरक्ति के उदाहरण (२३) राजा द्वारा सुदर्शन की स्तुति ।
सन्धि १० (१) जिन मन्दिरों का आलंकारिक वर्णन (5) जिनेन्द्र स्तुति (३) विमलवाहन मुनि का वर्णन (४) व्याघ्र भील का वर्णन (५) व्याघ्र भील से संग्राम (६) सुदर्शन के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त (७) इन्द्रियों की लोलुपता के दुष्परिणाम (८) इन्द्रियों के वशीभूत हुए देवों व महापुरुषों की विडम्बना (९) इन्द्रियविजय के महा सुफल (१०) नरजन्म और धर्म की दुर्लभता।
सन्धि ११ (१) राजा धाईवाहन का वैराग्य (२) गोचरी के समय नगर में सुदर्शन मुनि की चर्चा (३) मुनिधर्म का पालन (४) सुदर्शन मुनि की साधनाएँ (५) पंडिता ने देवदत्ता को सुदर्शन का पूर्ववृत्त सुनाया (६) देवदत्ता की भीषण प्रतिज्ञा (७) सुदर्शन मुनि विहार करते हुए पाटलिपुत्र पहुँचे। (८) पंडिता ने देवदत्ता को