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२१२ नयनन्दि विरचित
[८.७जाते हुए एक बड़ी प्रतिज्ञा की है ॥३॥ कपिला के साथ बातचीत करते हुए वहां मैंने ऐसा कह डाला है कि यदि मैं सुदर्शन का रमण न करूं तो निश्चय ही मर जाऊँगी। यह सुनकर पंडिता ने हँसकर कहा-एक खीले के लिए देवालय का नाश कर डालना उचित नहीं। आवेग में आकर शील को छोड़, जननिन्द्य-कार्य नहीं करना चाहिये । उत्तम सुवर्ण के कलश पर क्या खप्पर ( ठीकरा ) का ढक्कन दिया जाता है ? ॥६॥
___७. पंडिता द्वारा शील की प्रशंसा __ अन्य दिव्य आभरणों के पास में शील भी युवतियों का मंडन कहा गया है। दशानन जिसे हरकर ले गया, पुराणों के अनुसार, वही सीता अग्नि द्वारा जलाई नहीं जा सकी। उसी प्रकार शील में सुदृढ़ अनन्तमती, खग व किरात के उपसर्ग से बच गई। रोहिणी तीव्र जल की धारा में पड़कर भी शील के प्रभाव से नदी द्वारा बहाई नहीं गई। नारायण, बलदेव, चक्रवर्ती तथा तीर्थकरों की माताएँ आज भी त्रिभुवन में विख्यात हैं। वे सब शीलरूपी कमलसरोवरों की हंसिनी थीं। अतएव नागों, मनुष्यों, विधाधरों और देवों द्वारा प्रशंसित हुई। हे माता, जलकर राख का ढेर हो जाना अच्छा, किन्तु मदन के उन्माद से उत्पन्न कुशील ( दुराचार ) अच्छा नहीं। शीलवान की बुधजन सराहना करते हैं। शील से विवर्जित मनुष्य किस काम का? ऐसा जानकर, हे महासती माता, शील का परिपालन करना चाहिये। नहीं तो, हे देवि, लाभ की अभिलाषा करते हुए तेरे मूलधन का छेद ( विनाश ) हो जायगा ।।।
८. स्त्री-हठ दुर्निवार है शील से रहित होने पर तेरा लोगों में कर्ण-कटु 'हाय, हाय' का कोलाहल ही उठेगा। शीलविहीन की राज्यश्री चली जायगी। शीलविहीन का मरण होगा। यह सुनकर अभया महादेवी ने रोष से प्रज्वलित होकर कहा-"परोपदेश देने में सब कोई बड़ा ज्ञानी और सयाना बन जाता है। बहुत कहने से क्या ? यद्यपि मेरा बड़ा हाहाकार ( धिक्कार ) होगा, यदि दुर्लभ सम्पत्ति चली जाय, और मेरा मरण भी हो जाय, तो भी, हे पंडिते, किसी के कहने से मैं अपनी बात नहीं छोडूंगी। मैंने जो प्रतीज्ञा की है, उस पर मैं अपने को दृढ़ रक्खूगी। सुदर्शन के वियोग में मेरा मन झूर रहा है। क्या दूध की अभिलाषा को कांजी पूर्ण कर सकती है ? अतएव वह सुन्दर व विदग्ध सुदर्शन अवश्य ही यहाँ लाया जाय । पैर भले ही जल जाँय, किन्तु हृदय तो न जले। यदि किसी प्रकार प्रिय का समागम नहीं किया जा सका, तो निस्सन्देह शीघ्र ही मेरा मरण हो जायगा।" यह सुनकर पंडिता विचारने लगी कि संसार में 'गोह की पकड़' सुनी जाती है; किन्तु स्त्री का ग्राह (हठ ) उससे भी बड़ा है, जिसके कारण समस्त सचराचर जगत दुःखी है।