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२२६ नयनन्दि विरचित
[८. ३७करता हुआ, इन्द्रधनुषयुक्त सूर्यप्रभाधारी व विद्यत की चमक को लिये हुये, वर्षाकाल में नया मेघ प्रकट होता है ।
३७. राजा को खबर और उसका रोष तब लोगों को दौड़ते हुए देख कर राजा ने पूछा-"क्या कहीं गिरि के समान तुंग मदोन्मत्त हाथी छूट पड़ा है, या कोई महाधनी पुरुष वंदीगृह में डाला गया है, अथवा कोई अभिमानी शत्रु मेरे साथ युद्ध करने के लिए प्रवृत्त हो गया है॥ १॥ अथवा यहाँ कोई नटों का तमाशा हो रहा है अथवा कोई बड़ा कौतुक उत्पन्न हुआ है ?" तब किसी एक मनुष्य ने, नमन करते हुए, राजा को वृत्तान्त सुनाया कि जिस प्रकार सरोवर में घुस कर एक गजपति पद्मिनी का विध्वंस कर डालता है, उसी प्रकार सुदर्शन ने महाराज की अभया देवी को कलुषित किया है ।। २॥ यह सुन कर राजा लाल आखें करके, ओंठ काटता हुआ, नकुए फुलाता हुआ, भाल पर त्रिबली खेंच कर, भौहें मरोड़ कर, शरीर से कांपते हुए, खूब पसीने से भींग कर, भूतल पर हाथ पटक कर, रोषपूर्ण हो, इस प्रकार बोला ।। ३॥ कौन ऐसा है, जो मृगतृष्णिका को पीये, वज्र की सूई को खावे, विष के फूल चबाये, समुद्र की लहरों को सुखा दे, यम की दाढ़ों को तोड़ ले ( अथवा यम की दाढ़ी को नोच ले ) गरुड़ के पंखों को उखाड़ ले; एवं कौन ऐसा बली है, जो छल से व बलात्कार से मेरी प्रिया का उपभोग कर ले ॥४॥ जो कोई अग्नि, सर्प, वैरी, तथा चतुर जार की उपेक्षा करता है, वह दीर्घकाल तक सुख नहीं पा सकता। वह शीघ्र ही बड़ी आपत्ति देखता है। दुष्ट लोगों का निग्रह करना और सज्जनों का पालन करना योग्य है, और यही राजा का भूषण है। ( यह पृथ्वी छंद कहा गया है ) ॥ ५॥ रे रे भटो, जल्दी करो, जल्दी करो; जाओ, जाओ; और अभया को सहारा दो। तथा उस परपुरुष को पकड़ो, पकड़ो, पीटो, और तिल तिल काट कर क्षणभर में मार डालो।
३८. भटों की अपनी-अपनी डींग राजा का यह बचन सुन कर किसी ने अपनी तलवार पर दृष्टि डाली; किसी ने उदार व गुणवती व मुष्ठिप्राह्य कटिवाली उत्तम कलत्र के समान प्रत्यंचा चढ़े हुए धनुष की ओर देखा और उसे अपनी मुट्ठी में लिया। किसी ने अपनी असिधेनुका ( तेग ) को चमचमाया, मानों काल ने अपनी जिह्वा निकाल कर दिखलाई हो । किसी ने कहा-'जिस पर मेरा स्वामी रूठा है, उसकी मैं ओंठ सहित नाक काट डालूगा। कोई बोल उठा-'आज का दिन धन्य है, जो हमारे देव-देव ने हमें प्रेषण ( काम कर दिखलाने का आदेश ) दिया। मैं हाथोंहाथ ( जल्दी-जल्दी ) जाता हूं और इन्द्रजीत के समान उसको मार कर धर देता हूं। किसी ने कहा'मैं भी जाता हूं और जैसा अर्जुन कर्ण से भिड़ा था, वैसा शत्रु से जा लगता हूं।'