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१०.७] सुदर्शन-चरित
२४५ हैं।" इतना कह कर उस बालक ने शत्रु को हांका मारा और ऐसा युद्ध किया जो देवों को भी असाध्य हो। उसने अपने कृपाण से उस किरात का सिर काट लिया। राजा प्रसन्न होकर अपने नगर में लौट आया। उस समरांगण में घोड़ों के समूह के मारे जाने पर, गजपंक्ति के नष्ट हो जाने पर, तथा उद्भट भटों का मर्दन हो जाने पर, विधिवशात् तलवार से कटकर, मरकर वह शबर
६. सुदर्शन के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त वत्सदेश में एक ग्वाले का कुत्ता हुआ। वह सिंह के समान भयंकर था। एक दिन वह गौओं के साथ कोशाम्बी में आया व परिभ्रमण करता हुआ जिनमन्दिर में आकर रह गया। और जो कुरंगी नाम की शबरी थी वह यथाकाल मरकर काशीदेश की वाराणसी नगरी में एक सुन्दर महिषी हुई। भवांतर में जो किरात था, और फिर जो बेचारा श्वान हुआ था, वह मरकर, दुर्ग्राह्य अंगदेश में, अकंप चंपापुरी के बीच, क्रोधशील व लोभी सिंहनी नामक सिंह की प्रिया का पुत्र हुआ। वह खल कुलक्षयकारी कर्म करने लगा, मानों पुत्र के बहाने यमराज ही
आ गया हो। तत्पश्चात् वह गौओं की रक्षा करनेवाला सुभग ( गोपाल) हुआ। उसने वन में इन्द्रियों को जीतनेवाले साधु के दर्शन किये और नमो अरहतादि पद का ज्ञान प्राप्त किया, जिसके फलस्वरूप वहां से मरकर तू सुदर्शन हुआ है। अब तू घोर उपसर्ग सहकर, तप के द्वारा अनुपम केवल ज्ञान प्राप्त कर, स्पर्श, गंध, शब्द, व चक्षुरहित अनन्त-चतुष्टय व मोक्ष प्राप्त करेगा। और जो वह भील की प्रिया थी, तथा दूसरे भव में महिषी हुई थी, वह कराल काल के वश, यम के दांतों के बीच पड़ी।
७. इन्द्रियों की लोलुपता के दुष्परिणाम वह चंपानगर के श्यामल नामक रजक की यशोवती नामक भायां की वत्सिनी नामक पुत्री हुई। वह विधवा हो गई, तब उसने अनस्तमित-व्रत धारण कर लिया, जिसके फलस्वरूप, जैनधर्म के पुण्योदय से, मरकर, तेरी प्रिय भार्या मनोरमा हुई। वह भी देव और मनुष्य गति के सुखों को भोगकर निश्चय से मोक्ष जावेगी। इस प्रकार मैंने तुझे जो होनेवाला है, और जो हो चुका, वह वृत्तान्त कह सुनाया। मदोन्मत, मांसल-गात्र मातंग, स्पर्श इन्द्रिय के वशीभूत होकर, सघन वन में पकड़ा जाता है। मीन, अगाध जल के बीच उछलते-कूदते व चलते हुए मांस में प्रसक्त होकर ( रसना इन्द्रिय की लोलुपता से ) फँस जाती है। सुन्दर शरीर भौंरा रुनझुन करता हुआ, सुगंध के लोभ से, कमल पर बैठकर नाश को प्राप्त होता है। चिकना, नवीन अंगधारी पतंग आकाश में उड़ता हुआ, हर्ष से, चमकीले पदार्थ से
आकृष्ट हो, अग्नि में प्रवेश करता है। तथा सुन्दर कुरंग वन के बीच भ्रमण करता व मृगी से रमण करता हुआ, मधुर गीत से आकृष्ट हो, जीवन को समाप्त कर बैठता