Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 302
________________ ११. १२] सुदर्शन-चरित २५३ १०. विलासिनी द्वारा मुनि का प्रलोभन मैं भी बिजली से भी अधिक चपल विषयसुखों के परवश होकर, बहुत विपत्तियों में पड़ा। इस प्रकार जब सुदर्शन मुनि विरक्त भाव से अपने मन में पुनः पुनः विचार कर रहे थे, तभी उमा के चरण-कमलों की भ्रमरी, वह सुन्दरी उनकी ओर विलासपूर्ण दृष्टि से अवलोकन करती हुई उन मुनिवरनाथ के पास आई, जो क्षमा के निवासस्थान व तपरूपी लक्ष्मी से संयुक्त थे। वह कहने लगी-“तू अपने को दुख में क्यों डाल रहा है ? हे सुन्दर, सुखसमूह का भोग कर। तप करके तो सुख दुसरे भव में प्राप्त किया जाता है। गौ के थन को छोड़कर सींग को दुहने से क्या लाभ ? तू सोलह आभरणों के योग्य है ; फिर तू मल से लिप्त और नंगा क्यों रहता है ? क्यों तू व्यर्थ ही अपने शरीर को संतापित कर रहा है ? मेरे हितार्थ वचन पर विचार कर। अथवा, यदि तुझे तप का आग्रह ही लग गया है, तो भी तू सुख भोगकर, पीछे नग्न हो जाना। तू कोमल महिलाओं का रमण क्यों नहीं करता ? हाय-हाय, तू कैसा देव से छला गया है ? अरे, पूर्णचन्द्रवदना, अतिस्थूल नितम्बोंवाली, चक्रस्तनी, विलास-चंचलनयना, सुन्दर रमणीजनों का उपभोग कर।" ११. विलासिनी की कामलीला व मुनि की निश्चलता "तू तप से परभव में क्या पाएगा ? परभव किसने देखा है ? क्योंकि जीवन थोड़े से दिनों का है, अतएव मनोवांछित भोगों को भोगना योग्य है ?" किन्तु जिसने अपने शरीर को जीर्ण तृण के समान मान लिया था, उसका मन इन वचनों से कैसे भिद सकता था ? तब फिर वह सुन्दरी लोगों के मन को मोहित करनेवाले हाव, भाव, विलास और विभ्रम प्रकट करने लगी। कुछ सीत्कार, बहुत कुछ शरीर की मटकन, धीरे-धीरे काम-चेष्टा, स्तन-पीडन, हाथों से प्रहार ( अंगस्पर्श ) सुन्दर अधरों का पीड़न ( काटना ), जीभ से चाटना, आंखें मींचना, काममुद्रा ग्रहण करना, धीरे-धीरे नखों का संघटन, एवं नाना भोगमुद्राओं का विपरिवर्तन, ये सब पाकर भी जिसका हृदय नहीं भिदा, उसके समान इस भुवन में कौन कहा जा सकता ? वही पुरूष धन्य है, कृतार्थ है और भवसमुद्र के पार करने में समर्थ है। इस प्रकार जब तीन रात्रि-दिन निकल गए, तब उस सुन्दरी ने निराश होकर मुनि को श्मशान में जाकर डाल दिया। वहां मुनि शरीर के उपसर्ग के कारण त्रिविध निर्वेद से युक्त, रत्नत्रय धारण किये हुए व नग्न तथा उदासीन-चित्त हुए स्थित रहे। ---- १२. देवांगना के विमान का वर्णन वहां जब वे मुणिवर चतुर्विध आहार का त्याग किये हुए स्थित थे, तभी, हे श्रेणिक राजन्, एक दूसरी विस्मयजनक घटना उत्पन्न हुई। वह अत्यन्त विविध

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