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२६४ नयनन्दि विरचित
[ १२. १०. के प्रकाश को फीका कर देनेवाला एक बड़ा विहार जिनमन्दिर है। वहीं नृपविक्रमकाल के (वि० सं०) ग्यारह सौ संवत्सर व्यतीत होने पर, कुशल नयनन्दि ने
अमात्सर्यभाव से, यह केवलि चरित्र रचा। जो कोई इसे पढ़े, सुने, भावना करे या लिखे, वह शीघ्र ही शाश्वत सुख का लाभ पावे। पृथ्वीमंडल के चन्द्र, नरदेवासुर-वंद्य नयनन्दि मुनि को, देव निर्मलमति देवें एवं भव्यजनों को जिनेन्द्र की मंगलवाणी प्रदान करें।
इति माणिक्यनन्दि विद्य के शिष्य नयनन्दि द्वारा विरचित पंचणमोकारके फल को प्रकाशित करनेवाले सुदर्शनचरित में गजेन्द्र का विस्तार, सुरवरेन्द्र को स्तुति तथा मुनीन्द्र का सभामंडप, उनका मोक्षवासगमन, नमोकार पदों का फल और समस्त साधुओं की नामावली, इनका वर्णन करनेवाली बारहवीं संधि समाप्त ।
संधि ॥ १२॥ इति सुदर्शनचरित समाप्त