Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
View full book text
________________
सुदर्शन-चरित
tot चोज-( दे ) पाश्चर्य, चमत्कार छेइल्ल - छेक, चतुर, विदग्ध ७.१०.७
८.३७.५; ११.१३.१२, ७.१.८ छेयल्ल-छेक ४.१४.४, ५.६.११ चोल्लय-चोलक, चन्दोवा ३.८.८ Vछेर -(दे) चिल्लाना इ ६२.१२
छेल-छक
७.१.१२ छइल्ल-(दे) विदग्ध, चतुर ७.११.७; ७.१२.१० छोट्टिप्र-( दे ) छोटी ६.१५.६ Vछंड-छर्द, मुच् इ ११.४.११; °हि V छोड-( दे ) छोटय् इ ४.१०.६ ; ८.३.८ ; °मि ८.८.७
४.१५.२ छडिप्र-छदित, मुक्त, परित्यक्त ८.२३.२
८.२८.७ / छडिवि-छर्द + क्त्वा ८.३५ ६ छोडण ( दे ) छोड़ना ८.४१.१०; ९.१०.७ छक्कम्म-वैदिक षट्कर्म
४.१.४ छोडिन ( दे ) छोटित, मुक्त ५.१०.६ Vछज-( दे ) राज , शोभना इ १.३,६; छोत्ति-( दे ) छूत
८.२२.७ २.२.६, ७.६.६; १०.८.११ ; °ए छोल्लिय-( दे ) छोटी सी छोकरी ५.५.१२
९.२; ७.१२.१३ छम्म-छम, छल
११.८.५ जंगल-जङ्गल २.१०.११ ; ८.१६.२ छम्मिय--छद्रित, छलित ११ २.१० जंप - जल्प् °इ छरहरिय-(दे) छरहरित २.११.१० जंपणउ-जल्पनम् छाइय-छादित
७.१६.६ प्पिज-जल्प.(कर्मणि) °इ ६.८.३ छावासय-षट् अावश्यक ( कर्म ) ११.३.४ / पिर- जल्प् + इर छाहि-(दे) छाँह, छाया १६.१० (ताच्छोल्ये )
६.६.५ छिछइ-(दे ) असती, कुलटा ४ १४.४ जंभाइय-जृम्भायित, जृम्भित, छिक्क-छोत्कृत, छोंक ८.१५१ जंभाई
४.११.४ छिज-छिद् °इ
८.३.३ जंभारिस - जृम्भनशील, पालसी १२.७.६ छिव-( दे ) स्पृश इ ७१६८; जगहर-जग+गृह
२.१.१५ . छिवंति
१०.१०.१२
१/जग्ग-जागृ, जग्गेसइ ८.२२.३ छिन्वर-( दे ) चिपटी
जग्गेसए
८१३.२ छुट्ट-(दे) छुटित, मुक्त ८.१५.२, ११.५.११ जग्गिय जागृत
१.१.८ Vछुट्ट-(दे) छुट् °इ ६.१७.६, ६ २०.११ जमाइम-जामातृ क ( स्वार्थे )
६.२२६ . जामाता, जमाइ छुटकेस-मुक्तकेश
२.१०.१८ जलजल-ज्वलज्वल लति ११.१५.१३ छुड्डु--( दे ) यदि
१.२.४ जलमउ-(i) जलमय (ii) छुद्ध-( दे ) क्षिप्त ११.८.६ अउमति
२.४.१ छुट्टहीरा-( दे ) मणिजटितहीरा ७.७.५ जाई-जाति Vछुभ-क्षम् हिं
८.१४४ जाउहाण-जातुधान, राक्षस ६.१६.५ Vछुह-क्षिप् छुहेमि ७.११.६ जाहि-यावत्
९.१६.६ छूढउ--क्षिप्त
६.१०.१ जामाइउ-जामातृ °क छूढु-क्षिप्त २.१०.२५ जावहाण-जातुधान
६.१०.४
__छुट्टसमि

Page Navigation
1 ... 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372