Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 314
________________ सुदंसणचरिउ टिप्पण सुदंसण चरिउ की चार उपलब्ध प्रतियों में से क प्रति में प्रचुरता से सरल संस्कृत व कहीं कहीं हिन्दी, गुजराती एवं संस्कृत मिश्रित गुजराती अथवा गुजराती, मिश्रित संस्कृत भाषाओं में टिप्पण प्रति के पत्रों में ऊपर-नीचे, दाहिने-बाँयें चारों ओर लिखे हुए मिलते हैं। ख प्रति में बहुत थोड़े तथा घ में यत्र-तत्र टिप्पण हैं, जिन्हें इसी में सम्मिलित कर लिया गया है। इनके संपादन में प्रत्येक कडवक के आदि में संधि व कडवक संख्या दे दी गयी है। . संधि-१ १-१. ३. इह-जगति । ५. जसु-वीरस्वामिनः। ५. ण तित्ति पत्तु-तृप्ति न प्राप्तः। ६. सेलराई-शैलराजमेरुः टलटलियउ-चलितः। जम्माहिसेइजन्माभिषेके। ८. उत्तसिय-उत्त्रस्तः। १०. रत्तियाइ-रक्तया नाइं-उत्प्रेक्षते । १३. वयणु-मुखम् । वियप्पइ-विकल्पते । १४. चाएं-त्यागेन । विढप्पइ-गच्छति, व्याप्नोति । १-२. १. अप्पवीणु-अप्रवीण। चाउ-त्यागः। दविण-द्रव्यम् । ३. विरएमिरचयामि । अउठवु-अपूर्व । ४. कीरइ क्रियते । संभरण-संस्मरणं। सइं-स्वयं । मइ-मति । ८. तहो-चरम तीर्थकृतः। ६. आयन्नहो-आकर्णयत् । १०. पिहु-पृथु । ११. महिहरासु-मेरोः । १३. नई उ-नद्यः। १-३. १. पुंडुच्छवणइं-पुंडेक्षुवनानि । २. धुत्त-धूर्त । ३. वेस व-वेश्येव । णित्तुसु-निस्तुषं। सुयपंतिय-शुकपंक्तिः। ४. मेरएं-मर्यादया। ६. कमलकोसेकमलगर्भे, कमलमध्ये । ८. विलसइ-विलसति । ६. सुरहं वि णहि णिलउ-सुराणामपि न निलयः एवंभूतः। १-४. १. साल-प्राकारः वृक्षाश्च । सोण-रक्त पेसल-मनोज्ञ । पवाल-विद्रुमः किसलयश्च । २. तियसिंदु व-त्रिदशेन्द्र इव । विबुहयणमणिठु-विबुधजनानां मनोऽभीष्टं । रंभा-केलि, कदली, देवांगना च। ४. धम्म-धर्मः धनुश्च । अमयअमृतं, पक्षे मोक्षः। कुसुमसर-पुष्पबाण, पक्षे कुसुमैरुपलक्षितानि सरांसि । ८. उअहि व-उदधिरिव । परमहिहरिंद उक्कंपचत्तु-मेरुरिव परराजानां भयत्यक्तः ।

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