Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 293
________________ २४४ नयनन्दि विरचित [ १०.४ शान्त-चित्त, जिन-भक्त, रत्नत्रय-परिपालक, तप से तप्त, मदरहित और पंचाचार से युक्त थे। ४. व्याघ्र भील का वर्णन उन विमलवाहन नामक मुनिराज का अभिनन्दन करके नमस्कार करते हुए, वणिग्वर सुदर्शन ने उनसे अपने भवांतर पूछे। मुनिराज ने उससे कोई बात छिपा कर नहीं रखी। वे जिनवरों की वंदना करके सब वृत्तान्त बतलाने लगे। इसी जंवूद्वीपमें सुमेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में, अपने मध्य में गंगा और सिन्धु नदियों से युक्त, प्रसिद्ध व धन-समृद्ध भरतक्षेत्र है। उसके विन्ध्य देश के कोसल प्रदेश में मेघनाद भूमिपाल नामका राजा था। उसकी भार्या वसुन्धरी से लोकपाल नामका दिव्यशरीर पुत्र उत्पन्न हुआ। एक दिन राजमहल के सिंहद्वार पर सब लोग इस प्रकार पुकार करते हुए आए-" हे देव, हे देव, रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए। इस प्रकार कांपते हुए मनुष्यों के समूह को देखकर व उनके वचन सुनकर, विस्मित हो राजा ने अपने अनंतबुद्धि नामक मंत्री से पूछा। उसने कहा कि राजधानी से दक्षिण दिशा की ओर विन्ध्यपर्वत में एक पराक्रमी भील रहता है, जिसका नाम व्याघ्र है। वह सिंह के समान मदोन्मत्त हाथियों के कुंभों के विदारण में प्रसक्त रहता है, रक्त-नेत्र है, हाथ में प्रचंड चापदंड और बाण लिए रहता है, लंबी दाढ़ी रखता है, व मेघ के समान काले शरीरवाला है। उसके बाल ऊपर को उठे व बिखरे हुये हैं। वह भयंकर वेष रखता है, युद्ध में अजेय है और यमराज के समान क्रूरचित्त है। वह बड़े-बड़े स्थूलस्तनोंवाली कुरंगिणी नामक भार्या से युक्त है। वह दुनिवार व मोटे आकार का है। वह रोष करता है, लोगों को त्रास देता है और पुनः उसी पर्वत में प्रवेश कर जाता है। वह मेघ में बिजली की छटा के समान क्षण में दिखाई देता व क्षण में ही लुप्त हो जाता है। ५. व्याघ्र भील से संग्राम इसी कारण यह समस्त प्रजा करुण क्रन्दन करती हुई यहां आई है। यह सुनकर भूमिपाल राजा ने कुपित होकर कहा-“वह क्षुद्र क्या कर सकता है ?" फिर उन्होंने अपने अनंत नामक अनंतबलशाली सेनापति को आज्ञा दी। वह पुलकितगात्र होकर अपने भटसमूह व घोड़ों और हाथियों सहित चल पड़ा। अनंत सेनापति वहां पहुंचा। किन्तु पुलिन्द ने उसे जीत डाला। अनंत भयभीत होकर भाग आया। तब राजा रुष्ट हुआ। वह गर्व से बोला और उसने सेना को धीर धाया। फिर वह अपने ध्वज-चिह्नों व छत्र सहित झट से स्वयं वहां गया। किन्तु उसका हाथ अपने नग्न खङ्ग पर न पड़ा, तभी उसके पुत्र लोकपाल ने कहा-"आप शूरों के शूर हैं, प्रताप से सूर्य समान हैं, व महाराजों के भी राजा हैं, यह किरात आपके तुल्य नहीं। क्या कोई सिंह कुद्ध होकर जीभ लपलपाता हुआ, एक स्यार पर आक्रमण करता है ? हे देव, आप (व्यर्थ) मोह में पड़ गये

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