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२४६ नयनन्दि विरचित
[ १०.८. है। इस प्रकार मन में वशीभूत हो, सुख की लालसा से, विषयासक्त हो, मरकर जीव पुनः इस दुःखपूर्ण संसार में भ्रमण करते हैं।
८. इन्द्रियों के वशीभूत हुए देवों व महापुरुषों की विडम्बना __स्पर्श इन्द्रिय के वश से चंग मरण को प्राप्त हुआ, तथा रसना इन्द्रिय के कारण सुभौम नृप। उसी प्रकार गंध का लोभी गंधमित्र, दृष्टि ( चक्षु इन्द्रिय) के कारण सहस्त्रभट व श्रवणेन्द्रिय के रस से गंधर्वदत्त, मरण को प्राप्त हुये। जो कोई अपनी पांचों इन्द्रियों को प्रसार करने से नहीं रोकता, वह स्वयं अपने हाथ से अंगार खींचने का काम करता है। जो प्रसिद्ध व महामानी देव कहे जाते हैं; वे भी चित्त के वशीभूत होकर क्षय को प्राप्त हुये। ब्रह्मा तिलोत्तमा की काय को देखकर, मन के वशीभूत हो, चतुर्मुख हो गया। जो अनन्त कहा जाता है, वह भी अपने मन को न रोक सका ; उसने भी उन्मत्त होकर गोपों की गोपयों को ग्रहण किया। महादेव सती (पार्वती ) को अपने आधे शरीर में तथा सिर पर सुरसिंधु (गंगा) को बैठाए हुए है। इस प्रकार वह भी मन का लोभी व मदान्ध हुआ है। जो समस्त सुरों और असुरों के मस्तक का शूल था, जिसने ऊँचे पर्वत ( कैलाश) को जड़ से हिला दिया था, जिसकी लीलाएँ व काम-काज, सदैव शोभायमान थे, जिसका भ्राता विभीषण था, वह लंका का प्रधान, जगत्त्रय में प्रसिद्ध रावण, रामचन्द्र की अखंडसतीत्व से मंडित पत्नी को देखकर मोहित हो गया, और कामवासना-युक्त मन से उसको हर ले गया; जिसके फलस्वरूप वह रणांगण में लक्ष्मण के चक्र से मारा गया और नरक में पड़कर दुःख सहने लगा। उस भरतेश्वर ( अर्ककीर्ति ) का पुत्र भी सुलोचना के लोभ में पड़ गया, जिसके कारण वह कषायवश, मेघनाद द्वारा समरांगण में बन्धन को प्राप्त हुआ।
९. इन्द्रिय-विजय के महा सुफल महान् गंगा को पार करते हुए, पाराशर ने चलित मन हो, लज्जा छोड़, केवट की कन्या का आलिंगन किया, जिससे उसके गर्भ में तपस्वी महामुनि व्यास उत्पन्न हुए। द्रौपदी के केशग्रह के प्रसंग से महाभारत हुआ। इस प्रकार इस जग में, इस मन (कामासक्तमन ) के द्वारा कौन-कौन विडम्बित नहीं हुए, केवल एक जिनेन्द्र को छोड़कर। इस संसार में जिसका मन अपने वशीभूत हो गया, उसका त्रैलोक्य में यश भ्रमण करने लगता है ; मनुष्य, देव और विद्याधर उसकी सेवा करते हैं, तथा नागेन्द्र और नरेन्द्र उसके गुणसमूह की स्तुति करते हैं। विद्वेषी महान शत्रु उससे त्रस्त हो जाते हैं, तथा कुत्सित विघ्न उसके कदापि दुर्लध्य नहीं होते। बलवान्, उद्धत हाथी उसके आगे खड़े रहते हैं, और चंचल घोड़े कहीं समाते नहीं हैं। उसके अच्छे-अच्छे मंत्र, यंत्र और तंत्र स्फुरायमान हो जाते हैं, व शासनदेवता उसके सब काम करते हैं। धनी लोग उसे अपने