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२३८ नयनन्दि विरचित
[६.१७ नहीं पड़ता ? फिर चेतना प्राप्त करके वह नृपश्रेष्ठ उस पिशाच पर ऐसा टूट पड़ा, जैसा हाथी सिंह के प्रति दौड़े। अपनी बिजली के समान चमचमाती हुई तलवारों से मनोहर निशाचर और नृप दोनों मेघों के समान भिड़ गये। एकक्षण में चंपापुरी के राजा ने उस यातुधान पर तलवार से आघात किया, जिससे उसके दो टुकड़े हो गये। किन्तु अब राजा पर दो निशाचर आक्रमण करने लगे। राजा ने उन दोनों को भी काट डाला, तो चार निशाचर बन गये। जब राजा ने उन चारों को मारा, तब मारो मारो कहते हुए झट क्रोधपूर्ण आठ निशाचर बन गये। राजा ने
आठ को मारा, तो सोलह चमक उठे । सोलह के मारे जाने पर बत्तीस दौड़ पड़े। ज्योंही उन बत्तीसों को दो टुकड़े किये, त्योंही चौंसठ उत्पन्न हो गये। जब वे चौंसठ मारे गये, तो तत्क्षण एक सौ अट्ठाईस विशालकाय निशाचर उठ खड़े हुए। उन अतिरौद्ररूप निशाचरों से घिरा चंपापति ऐसा शोभायमान हुआ, जैसा दुगने दुगने द्वीप-समुद्रों से आवेष्टित जंबूद्वीप ।
१७. सुदर्शन द्वारा राजा की रक्षा उन निशाचरों ने पुनः पुनः राजा को कैसा वेष्टित किया, जैसा कर्मों के द्वारा संसारी जीव। कोई कितना ही बलवान व गुणों से गौरवशाली क्यों न हो, यह बहुतों से आक्रान्त होने पर अकेला क्या कर सकता है ? अतएव उस अवसर पर वह राजा वहाँ से भाग गया, जैसे सिंहों के समूह से त्रस्त हुआ हाथी। तब निशाचर ने अपनी विक्रिया को समेट लिया, जिस प्रकार कि ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने पर दिनेश रात्रि को संकुचित कर लेता है। आगे आगे राजा दौड़ता और उसके पीछे पीछे वह व्यंतर देव, जिसप्रकार कि पूर्वोपार्जित कर्म जीव का पीछा करता है। तब उस रजनीचर ने अपना कृपाण खींचकर, भागते हुए राजा से कहा-"तू उस सुदर्शन की ही शरण में जा। अन्य किसकी शक्ति है जो तेरी रक्षा कर सके ?" यह सुनकर राजा गलितमान होकर सुदर्शन की शरण में गया
और अतिदीन भाव सहित भय से कांपते हुए बोला ( अपने प्राणदान की प्रार्थना की)। तब सुदर्शन ने अपना योग छोड़कर राजा की रक्षा की, व तलवारों से भीषण योद्धाजनों से उसे छुड़ाया। अपकार करनेवाले के प्रति भी उपकार करे ऐसा सुदर्शन को छोड़ दूसरा कौन है ?
१८. राजा द्वारा सुदर्शन से क्षमा याचना वह राजा तो दूर रहे, जिसका धर्म में भाव हो उसे देव भी नमन करते हैं। इसी बीच उस निशाचर ने आदरपूर्वक समस्त सैन्य को जीवित कर दिया। फिर उसने राजा से वह कपटयुक्त स्त्रीचरित्र की बात कही, जो देवों को भी दुर्लक्ष्य है। यद्यपि कामदेव की गोदी में भी बैठ जाय तो भी स्त्री अन्य पुरुष की अभिलाषा करती ही है। तेरी अग्रमहिषी इस अतिसुन्दर सुदर्शन पर मोहित हो गई। उसने