________________
६. १६] सुदर्शनन-चरित
२३७ करता, नरेन्द्रों का मर्दन करता। वह पक्षी का रूप धारण करता, फिर बन्दर का, व क्षण मात्र में चकवे का। फिर एक क्षण में ही वह कपोत, कुरंग या तुरंग बन जाता। फिर एक क्षण में बलाक, चकोर व मयूर का रूप धारण करता। फिर क्षण में ही नकुल, सर्प, मत्स्य या तरक्ष ( तेंदुश्रा) बन जाता। फिर वह विशाल वाराह का रूप धारण करता, और फिर एक क्षण में ही भौरा ( बरं ) बन जाता। फिर विकराल स्यार और फिर एक क्षण में मराल बन जाता। फिर सुन्दर गजेन्द्र
और फिर एक क्षण में मृगेन्द्र बन जाता। व फिर वह मोटा भैंसा, गधा या ऊंट बन जाता। वह अनेक प्रकार के मुह वनाता, व अनेक समर्थ हाथों की विक्रिया करता। तो भी उसे देखकर, नरेन्द्र अपने मन में कंपायमान नहीं हुआ। (यह लोगों को अभिराम मौक्तिकदाम छंद प्रकाशित किया गया)। राजा जिस किसी भी रूप में उसे अपने सम्मुख देखता, उस उस पर प्रहार करते रुकता नहीं था, जैसे मानों रावण के युद्ध में राम व कौरवों के सैन्य में भीम विचरण कर रहा हो।
१५. निशाचर और राजा का विक्रियायुद्ध राक्षस ने एक दुर्निरीक्ष्य काला मूषक छोड़ा; उस पर धाईवाहन ने अत्यन्त रुष्ट विडाल छोड़ा। राक्षस ने सुन्दर चंचल तुरंग छोड़ा; धाईवाहन ने उस पर तीक्ष्ण सींगों वाला भैंसा छोड़ा। राक्षस ने विशालकाय मत्तहाथी छोड़ा; धाईवाहन ने लंबी जीभवाला दारुग सिंह छोड़ा। राक्षस ने आकाश में उठता हुआ मेघ प्रकट किया; तब धाईवाहन ने तुरन्त ही घोर पवन चला दिया। राक्षस ने प्रज्वलित अग्नि प्रकट की; धाईवाहन ने जलवृष्टि युक्त मेघ प्रकट किया। राक्षस ने सूखा अस्खलित वृक्ष प्रकट किया; धाईवाहन ने जलता हुआ पावक छोड़ा। जिस क्षण राक्षस ने पत्थरों से पूर्ण शैल प्रकट किया; उसी क्षण धाईवाहन ने प्रचंड वज्रदंड छोड़ा। राक्षस ने विशाल स्फुरायमान चन्द्र छोड़ा; धाईवाहन ने उसकी प्रभा को हरण करनेवाले राहु को छोड़ा। राक्षस ने झट से भीषण अन्धकार छोड़ा; तो धाईवाहन ने अनेक किरणों से प्रकाशमान भानु छोड़ा। जब राक्षस ने मत्स्यपूर्ण सागर प्रकट किया, तभी धाईवाहन ने कन्दराओं से युक्त मंदर पर्वत प्रकट किया। राक्षस ने प्रदीर्घ नागपाश प्रेषित कियाः धाईवाहन ने अपना चमचमाता हुआ गरुड़ रूप बाण छोड़ा। तब वह निशाचर राजा के साथ युद्ध करते करते संग्राम से भाग गया, और तत्क्षण फिर लौट आया। ( यह तोणक छंद कहा गया)। तब राजा ने निशाचर से कहा- "रे निर्लज, यदि तू रणांगण से भागा, तो फिर लौटकर क्यों आया ? भाग जा, भाग जा, नहीं तो मैं तुझे मार डालूँगा।"
१६. निशाचर के दुगने दुगने मायारूप जब राजा ने आँखें फाड़कर ये वचन कहे न कहे, तभी निशाचर ने भल्ली का प्रहार करके उसे मूच्छित कर दिया। अथवा कौन अभिमानी है, जो आपत्ति में