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६. २० सुदर्शन-चरित
२३६ अन्धेरे में इस वणीन्द्र को उठवा मंगाया, किन्तु वणीन्द्र सुमेरु के समान निश्चल शरीर रहा। तब सूर्योदय होने पर घबराई हुई रानी ने अपना शरीर फाड़ लिया
और हाहाकार मचा दिया। सहसा तेरे द्वारा प्रेषित किंकरों से जब सुदर्शन तीक्ष्ण तलवारों से मारा जाने लगा, तब मैंने अपने आसन को कंपायमान होने से सब वृत्तान्त जान लिया। फिर मैंने यहाँ आकर तेरे भृत्य-समूह को कीलित किया। जो चरमशरीरी होते हैं, वे मारने से मरते नहीं, और हमारे जैसे देव उनके उपसगों का हरण करते हैं। जब तू सुसज्जित होकर यहां आया, तब मैंने अपना मायारूपी सैन्य निर्माण किया। अनन्तर विपक्षियों को मारने का जो वृत्तान्त है, वह, हे नृपति, तेरे भी प्रत्यक्ष है। तब राजा पश्चात्ताप करता हुआ पुनः भत्ति.पूर्वक सुदर्शन को मनाने लगा-मुझे क्षमा करो। मेरे दोषों का विचार करने से क्या लाभ ? यह सुनकर वणिग्वर ने कहा-हे राजन् सत्पुरुष के बहुत गुणों से क्या, उसके दो ही गुण पर्याप्त हैं-अर्थात् उसके मन में रोष बिजली की चमक के समान क्षणस्थायी और मैत्री पत्थर की रेखा के समान चिरस्थायी होते हैं।
१९. राजा का अर्द्धराज्य समर्पण व सुदर्शन द्वारा अस्वीकार
तब राजा ने कहा-सत्पुरुष के उपशम ही परम योग्य है। वह ऐसा शुद्ध स्वभाव और स्वच्छमन होता है कि दूसरों के उपहास से व दुर्जनों की निंदा से, क्षार द्वारा दर्पण के समान उद्भासित होता है; तथा निर्मल होकर और भी अधिक चमक उठता है। मैं तुम्हारा अपकार करके ढीठता से आकर तुम्हारे चरणों की शरण में प्रविष्ट हुआ हूँ। मुझ अपकीर्ति कमानेवाले की तुमने रक्षा की है। तुम्हीं ने मुझे यह राज्य और मनुष्य जीवन प्रदान किया है। तुम्हीं मेरे बन्धु, इष्ट, सुहृद् व सजन हो। तुम गुणों की राशि व श्रेय का अर्जन करनेवाले हो । हे, हे, सुन्दर वणिग्वर, तुम्हारे उपकार का इस जगत् में कोई प्रत्युपकार नहीं। यद्यपि बात ऐसी है, तो भी मेरी एक बात मानिए। आप मेरे सुखकारी आधे राज्य का उपभोग कीजिये। इस पर उस वणिग्वर ने उत्तर दिया-"ढलते हुए दिन की सुख-सामग्री के समान इन्द्र-धनुष की कान्ति को प्रकाशित करनेवाले राज्य से, हे राजन, मेरे मन की क्या अभिलाषा पूर्ण होगी ?
२०. राजा द्वारा प्रलोभन तथा सुदर्शन का वैराग्य संपत्ति की सम्हाल से, राजनीति के पालन से, शत्रुवंश के साथ युद्ध से व दुष्ट जीवों के निग्रह से एक जीवनमात्र के लिए अमित पाप का उपार्जन किया। इससे, हे नरेन्द्र, कौन सी कार्यसिद्धि हुई ? अतएव तू ही इस राज्य ऋद्धि का उपभोग कर। मैं तो दुस्सह तपश्चरण करूंगा और भवसमुद्र को पार करूंगा।" तब राजा इस प्रकार बोला-"तू तप कैसे करेगा ? अभी भी तेरी युवावस्था है और तेरा पुत्र भी बहुत छोटा सा है। इसलिए, हे तात, उसका लालन-पालन