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२३० नयनन्दि विरचित
[.४४० ( साधारण ) ज्वर के समान नष्ट हो जाता है, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥६॥ दुर्लभ पाशव्यूह रचकर भी शत्रुदल उसे मार नहीं सकता व कृपाण भी उसके लिए कमल जैसा कोमल हो जाता है, जिसके मन में जिनेन्द्र देव का स्मरण हो ॥१०॥ जिस प्रकार गारुड़िकों (मंत्रवादियों) द्वारा श्रेष्ठ खगेन्द्र (गरुड) का स्मरण करने पर विष नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार नयनों को आनन्ददायी जिनेन्द्र का स्मरण करनेवाले भव्यजनों का उपसर्ग निवारण हो जाता है।
इस प्रकार माणिक्यनन्दि त्रैविद्य के शिष्य नयनन्दि द्वारा विरचित पंचणमोकार फल को प्रकाशित करने वाले सुदर्शनचरित में पंडिता व अभया का वार्तालाप, कूट पुतलों को बनवा कर सुदर्शन को क्षोभ उत्पन्न करना, पुन: प्रभात होने पर हाहाकार मचना, नरेन्द्र के भटों का स्तंभन व देवों को जयजयकार, इन सबका वर्णन करने वाली पाठवीं संधि समाप्त ।
॥ संधि ॥