________________
२१४ नयन्दि विरचित
[८. १२ आगमन को जान रहे हों, और सातों ही मानो उसके गुणों की स्तुति कर रहे हों। सातो मानों अभया पर हाहाकार ध्वनि कर रहे हों, और सातो मानों उसके मरण की रट लगा रहे हों। उन सातों पुतलों को अपने घर लाकर पण्डिता ने शंका छोड़ वस्त्र से किस प्रकार ढंककर रख दिया, जिस प्रकार समस्त दोषगुणों के द्वारा ढंक दिये जाते हैं।
१२. द्वारपालों से संघर्ष फिर पण्डिता चुपचाप अपने घर में रही। प्रतिपदा का दिन आने पर उस विदुषी ने प्रसन्न मुख होकर सहसा एक पुतले को संचालित किया। मंद मंद चलते हुये, स्थान स्थान पर उसे रखते हुए, और इस प्रकार सन्ध्या का समय करते हुये वह राजप्रसाद के प्रथम द्वार पर पहुँची। वहाँ यष्टिधारी पहरेदार ने उससे पूछा-'यह क्या है ?' तब पण्डिता ने लाल आँखें करके रोष प्रकट करते हुए कहा-'इस चिंता से तुम्हें क्या ?' इन वचनों से रक्षपाल कुपित हुई और पण्डिता की ओर भृकुटी तान कर बोली-'एक तो तूं बिना पूछे प्रवेश कर रही है, और दूसरे पूछने पर कोप करती है। अपना कोई गुप्त कार्य रचने के हेतु प्रवेश करते हुए तुझे क्या हो गया है ? यदि इस रचना ( कार्य ) से कोई दोष ( अनिष्ट ) उत्पन्न हुआ, तो राजा हमें दण्ड देगा।" यह कहकर प्रतिहारियों ने प्रवेश करती हुई पण्डिता का उपरना ( ओढ़नी) इस प्रकार खींच लिया, जैसे पूर्वकाल में सगर के पुत्रों ने क्रोधित होकर गंगा के प्रवाह को खींचा था।
१३. द्वारपालों को पंडिता की धमकी इस पर पंडिता ने उस पुतले को फोड़ डाला, और दंभ से लाल आँखें करके कहा-"आज देवी अपने गृह में पुतले को सजाकर उसको जगानेवाली थी। तुमने इस पुतले को फोड़ डाला। अब कल तुम सब गर्वीले द्वारपालों के सिर कटवा डालूँगी। अब तुम्हारी रक्षा कोई नहीं कर सकता, चाहे वह बुद्ध या सिद्ध खगेन्द्र (गरुड़ ) हो, या स्कन्द ( कार्तिकेय ), इन्द्र या देववृन्द, वह यक्ष हो चाहे राक्षस, चन्द्र, सूर्य, राजा, नाग अथवा क्रूर काल। भले ही वह नारायण हो, या ब्रह्मा ( स्थविर ), अथवा लम्बोदर ; अब किसी के द्वारा भी तुम्हारी रक्षा नहीं हो सकती।" यह सुनकर चित्त में भयभीत होकर उन्होंने सिर नवाते हुए कहा"हमारी ऐसी दुर्दशा कराना उचित नहीं। (यह कामावतार छंद कहा गया है) बहुत वचन-विस्तार से क्या, अब तू जब अगली बार अपना पुतला लाएगी, तब यदि मैं अंगुली भी उठाऊँ, तो तू रोष करना।"
१४. द्वारपालों का वशीकरण द्वारपालों का यह वचन सुनकर बुद्धिमती पंडिता शान्त हुई और बोली"क्या राजनीति मैं नहीं जानती, जो मैं कोई लोकविरुद्ध वस्तु लेकर आऊँगी ?