Book Title: Sudansan Chariu
Author(s): Nayanandi Muni, Hiralal Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 250
________________ ७. ७ ] २०१ सुदर्शन चरित ५. वसन्त का आगमन वसंतराज का अग्रगामी मंदसुगंध मलयाद्रि का पवन हृदय में क्षोभ उत्पन्न करता हुआ प्रसारित होने लगा, और मानिनी महिलाओं के मान का मर्दन करने लगा । जहाँ जहाँ मलयानिल चलता था, वहां वहां मदनानल उद्दीप्त होने लगता । जहां सुन्दर अतिमुक्तलता का पुष्प विकसित हो, वहां भ्रमर क्यों न रस का लोभी हो उठे ? जो मंदार पुष्प से अत्यन्त कुपित होता है, वह अपने को कुटज पुष्प पर कैसे समर्पित कर सकता है ? भ्रमर भूल कर, श्यामल, कोमल, सरस और सुनिर्मल कदली को छोड़ कर, निष्फल केतकी के स्पर्श का सेवन करता है । ठीक है, जो जिसे रुचे, वही उसे भला है । महकता हुआ तथा विरहिणियों के मन को दमन करता हुआ प्रफुल्लित दमनक किसे इष्ट नहीं है ? जिनालयों में सुन्दर पूजानृत्य प्रारम्भ हो गये और तरुण विकारयुक्त ( शृंगारात्मक ) चञ्चरी नृत्य करने लगे । कहीं उत्तम हिंडोला गाया जाने लगा, जो कामी जनों के मन को डावाडोल करता है । अभिसारिकायें संकेत को जाने लगीं। जिनके पति बाहर गए हैं, वे अपने कपोलों को पीटने लगीं । पथिक अपनी प्रियाओं के विरह में डोलने लगे, जैसे मानों मधुमास ने उनको भुलावे में डाल दिया हो। ऐसे समय में पुष्पों और फलों के समूह से युक्त करंड लेकर वनपाल तत्क्षण राजा की सभा में आ पहुंचा । ६. नाना वादित्रों की ध्वनि नरेन्द्रों के चूडामणियों से जिसके पांव घिसते थे, ऐसे राजा को अष्टांग नमस्कार करके उस वनपाल ने कहा कि मनोज्ञ उद्यानवन खूब फूल उठा है, और भृङ्गाली वहां एकत्र हो गई है, जिससे वह उपवन शोभायमान है । इसी समय राजा को मादलों की धुमधुम ध्वनि सुनाई दी । कांस कनकनाने लगे । विशेष दुंदुभियों की गंभीर दुमदुम ध्वनि हो उठी । उद दुमदुमाने और तिउल ढमढमाने लगे । कंसाल-युगल निरन्तर सलसलाने लगे । ताल रणझणाए और दुक्कों की त्रं त्रं ध्वनि होने लगी । डमरू डमडमाए और डक्का डनडनाए । करड-समूह के थरथरिरे थरथरि शब्द तथा भक्किरि ( भांझ ) का भिभिभिंभिं शब्द सुनाई पड़ने लगे । पटों के थगेदुगेगे थगेदुगेगे, तखेतखिखे शब्द सुनाई दिये । सुन्दर तटखु 'दों की किरकिरिरि-किरकिरिरि ध्वनि तथा हाथों में लिये झल्लरियों की झिमझिम ध्वनि फैलने लगी । रुंज रंजन, भंभं भंभा, काहल तुरतुर और शंख हूहू ध्वनि करने लगे । और अन्य बहुविध असंख्य तूर्य, आनन्द से पूरित हुए वादक गण अपना अवसर देख सहसा बजाने लगे । ( यह मदनावतार नाम का छंद है ) । यह सूर्य का निनाद सुनकर शत्रुओं की सेनाएँ मूर्च्छित हो गयीं, तथा समस्त दिग्गज और दिक्पाल मदहीन हो गये । ७. राजा और प्रजा की उपवन-यात्रा इस प्रकार के रव से भुवनव्यापी वसन्तोत्साहकारी सुन्दर वाद्य ध्वनि को सुनकर राजा हर्ष से प्रफुल्लित हो उठा और नगर से निकल कर उद्यानवन की ओर २६

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