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नयनन्दि विरचित
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चल पड़ा। उद्यान-क्रीड़ा में मन लगा कर राजा बुद्धिमानों सहित चलता हुआ ऐसा सुशोभित हुआ जैसे देवों से संसेवित इन्द्र। अन्तःपुर से अलंकृत अभया नाम की रानी भी चली, जैसे इन्द्राणी देवी चल पड़ी हो। कांतिवान, पृथ्वी-मंडल को आनन्ददायी सुदर्शन भी चलते हुए ऐसा शोभायमान हुआ, जैसे जड़ा हुआ हीरामणि । अपने सौभाग्य से रोहिणी को भी तिरस्कृत करने वाली गृहिणी मनोरमा हर्षित हुई चली। उसका सुकान्त नामक पुत्र भी क्रीडा में उत्साह रखता हुआ, अपने सहचरों से अलंकृत होकर चल पड़ा। सेठ का मित्र, जनप्रिय तथा अपनी ऋद्धि में माधव के सदृश कपिलभट्ट भी चला, और उसकी लक्ष्मी के सदृश, अल्पोदरी ( क्षीणकटि ), कमलपत्राक्षी कपिला नाम की प्रिया भी चली। तथा समस्त लोक मन में सन्तुष्ट हुए चल पड़े ( यह उर्वशी नामक छन्द शोभायमान है)। उस नानाप्रकार के वृक्षों से सघन वन में राजा के पहुंचने से ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे मानों नन्दन वन में देवों का आगमन हुआ हो।
८. वनकी वृक्षावली का विलासिनी सदृश सौन्दर्य __ जिस प्रकार महान् स्वरयुक्त, विशेषपात्रों से भूषित, चूने से पुते हुए महल (सुधालय ) निवासी, उत्तम कविगगों से सेवित, शुभ लक्षणों से अलंकृत और सुन्यायशील राजा शोभायमान होता है; तथा जिस प्रकार महावाणधारी, विशेष वाणपत्रों से भूषित, शुभ लक्षणों का निधान, सुकपिवृन्दों से सेवित, सद्भ्राता लक्ष्मण से अलंकृत सुनायक राम शोभायमान हुए; उसी प्रकार महासरोवर से युक्त, नवीन प्रचुर पत्रों से भूषित, सुख का निधान, सुन्दर वानरों से युक्त, अच्छे लक्ष्मण वृक्षों से अलंकृत, वन्य पशुओं से भरा हुआ वह उपवन शोभायमान हो रहा था। उस वन में राजा ने वृक्षावलि देखी, जहाँ राजहंसों का गमनागमन हो रहा था। जहाँ कदली के अतिकोमल वृक्ष दिखाई दे रहे थे। जो बड़े बड़े लतागृहों से रमणीक थी। जहाँ फूल फूल रहे थे। जो अति निर्मल थी। जहाँ भौरों की गुंजार हो रही थी। जो बेंतों और बर्र की झाड़ी से अतिमनोहर थी। जहाँ बड़े बड़े ऊँचे माहुलिंग ( बिजौरे के वृक्ष ) उद्भासित हो रहे थे। जहाँ सुकुमार लताएँ व सुन्दर अशोक के लाल पत्ते, बिंबाफल, दाडिम के बीजे, चंपक के फूल, विकसित कुमुदिनी, कमल, मयूरपिच्छ, चंदन, केशर, तिलक व अंजन, कपूर, बहुभुजंग, सिंह, कांचनवृक्ष, सुन्दर मंड दिखाई देते थे; और जो कोकिलाओं के ललित
आलाप से सुशोभित हो रही थी। इस प्रकार वह वृक्षावली एक विलासिनी के समान दिखाई दी, जो राजहंस के समान गमन करती है, जिसकी जंघाएँ और पिंडलियाँ कदली वृक्ष के समान अतिकोमल हैं। जो बड़े लतागृह में रमण करती है; तथा पुष्पों के आभूषण धारण किये हैं। जो अत्यन्त गोरी है। जिसकी रोमावली भ्रमर के समान काली और स्निग्ध है। जिसकी नाभि गोलाकार
और गहरी है। जो अति मनोहर है। जिसके स्तन, माहुलिंग के समान पीन, प्रवर और उत्तङ्ग हैं। जिसकी भुजाएँ लता के समान अति सुकुमार हैं। जिसकी