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१९० नयनन्दि विरचित
[६.३माता से भी संग करता है, भौंहे मरोड़ता है, गर्जता व रेंकता है, विह्वल होकर मार्ग में जहाँ कहीं भी गिर पड़ता है, चिल्लाता है, पुकारता है, खोजता है, फाड़ता है, मारता है, रुंधता है, बाधता है, जूझता है, तथा मूर्छित होता है। मूर्छा युक्त होने पर कुत्ते उसे पुनः पुनः सं घते हैं और लाँधकर- उसके मुख में मूतते हैं। मद्यपान के कारण समस्त यादव कुल समाप्त हो गया, तथा चारुदत्त दुख-परंपरा को प्राप्त हुआ।
३. मांस-भक्षण के दोष मद्य के दोष कह सुनाये, तुझ से छिपाये नहीं। अब, हे वणीश, मांस के दोष जैसे सुप्रसिद्ध हैं, वैसे मैं कहता हूँ, तू सुन। मांस, शुक्र और शोणित से ही उत्पन्न होता और पशुओं के वध से ही प्राप्त होता है। वह देखने में भी बीभत्स दिखाई देता है, तथा जिनेन्द्र के आगम में घृणित कहा गया है। उसमें जीव उत्पन्न होते हैं, जो दृष्टिगोचर नहीं होते। जो माँस इस प्रकार का होता है, उसे बुद्धिमान कैसे खावे ? जो हीन मनुष्य मांस खाता है, उसके अहिंसा भाव नहीं हो सकता। एकचक्र नगर में जो बक नाम का प्रधान राक्षस था, वह मांस खाया करता था, जिसके कारण वह मरकर रौरव नरक में गया। पूर्वकाल में विष आकाश में गमन करते थे, किन्तु मांस खाने के कारण भूमि पर आ पड़े। कोई पशु के बध से व मांस भक्षण से धर्म होता है, ऐसा कहते हैं। (हे गुणालय, यह तोमरेख पुष्पमाल नामक छन्द है।) यदि धर्म ही इस प्रकार का हो, तो पाप कैसा कहा जाय ? यदि इसके द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति हो तो जीव नरक किसके द्वारा जायेगा?
४. मधु-पान के दोष वृक्षों से भयानक वन में मधुमक्खियों का छत्र देखकर, निर्दयी लोग उससे मधुरस निचोड़ते हैं, जो विष के समान है। उसे पीना योग्य नहीं। यदि भोजन में एक भी मक्खी दिखाई दे जाय, तो उससे सभी को घृणा हो जाती है। वे मुँह बनाते हैं, खूब थूकते हैं, तथा खाये हुए भोजन का भी वमन कर देते है। किन्तु, हाय, हाय, लोग कितने अज्ञान और मूढ़-बुद्धि हैं, तथा इस लोक और परलोक दोनों जन्मों के विरोधी हैं, कि वे जिह्वेन्द्रिय के वशीभूत होकर मक्खियों के छत्र के अंडे व वसा के रस को पी जाते हैं। कुछ लोग लोगों में घोषणा करते हैं कि मधु अति पवित्र है, वह अच्छा पोषण करती है और कुछ भी दूषण नहीं करती। मधु को शुचि शुचि कहते हुए लोग क्षय को प्राप्त हो जाते हैं। वे इस लोकाचार की ओर दृष्टि नहीं देते कि बारह गांव जलाने में जो पाप होता है वही पाप मधु निचोड़नेवाले को होता है। फिर जो जिह्वा का लोभी उसका भक्षण करता है, उसके पापों की संख्या कौन कह सकता है ? प्राचीन काल में दुःख और