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सुदर्शन-चरित
९. रात्रि-भोजन के दोष स्वर्ग से च्युत होकर वह देव उत्तम मनुष्य होता है और सुख भोग कर, फिर तप रूपी अग्नि से तप्त हुआ, कर्मरहित होकर, परम मोक्ष का लाभ पाता है। रात्रि-भोजन के कारण व्रत शोभा नहीं देते। खलजन के प्रति किये गये उपकार क्या हित करेंगे? जिस प्रकार पर्वतों में मंदर पर्वत श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में रात्रि-भोजन-त्याग सारभूत है। किन्तु लोग अपने मन में योग्यायोग्य का विचार नहीं करते और गाडर-प्रवाह से ( भेढ़िया-धसान, लकीर के फकीर बन कर ) चलते हैं। वे मूर्ख सूर्यास्त हो जाने पर भी भोजन करते हैं; नियम लेकर नहीं रहते । यदि मनुष्य रात्रि का भोजन नहीं छोड़ते, तो पशुओं और मनुष्यों में अन्तर ही क्या रहा ? रात्रि के समय में भूत-राक्षस मिलते हैं, और दृष्टि के अगोचर रहते हुए ही भोजन निगल जाते हैं। रात्रि के समय भोजन में मल, धूल व बाल तथा प्रलयकाल दिखाने वाला सर्पविष, कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। यदि भोजन में घिरिहोल ( मक्खी ) आदि कीट-पतंग प्रविष्ट हो जाय, तो अदृश्य रोग उत्पन्न होना संभव है। और भी जो दूसरे जीव भ्रमण करते रहते हैं, वे भोजन में अवश्य ही
आ गिरते हैं। हृदय के अन्धे इन्हें भी मोड़-माड़ कर खा जाते हैं । इस प्रकार के सैकड़ों दोष स्पष्ट ही रात्रि-भोजन में होते हैं। इसे बूझ कर ( समझ कर ) हलाहल विष खाना अच्छा, किन्तु शील छोड़ कर रात्रि को भोजन करना अच्छा नहीं।
१०. रात्रि-भोजन से अन्य सब साधनाओं की निष्फलता
हाय, हाय, लोग कैसे मूढ़ और पापग्रस्त हैं कि वे अपना हित भी नहीं जानते। यदि रात्रि को भोजन न किया जाय, तो क्या यह शरीर सहसा ही क्षीण हो जायेगा, या मर जायगा ? चाहे पंचाग्नि तप करो, सुहावना पूजा-पाठ करो, जलती हुई अग्नि में चढ़ो या भयंकर पर्वत से नीचे गिरो (भृगुपात करो)। चाहे गजकनखल (तीर्थ ) को जाओ, चाहे गंगाजल में स्नान करो, शरीर का मल दूर करो और सिर में गुग्गुल लगाओ; तिल जौ, व घृत का होमे दो, तथा सैकड़ों द्विजवरों को प्रणाम करो। चाहे शत्रुओं से कलह करके गोग्रहण में मरो, चाहे ब्राह्मण धर्म का उपदेश दो, चाहे गुरु से दीक्षा लो। चाहे हर ( महादेव ) की अर्चना करो, और उनके आगे नाचो। इस प्रकार शरीर को चाहे जितना क्षीण करो, किन्तु यदि रात्रि-भोजन किया गया, तो फल कुछ न होगा। (यह अमरपुरसुन्दर नामक उत्तम छंद है।) जिस प्रकार दूध से भरे हुए घट को सुरा का एक बिन्दुमात्र विनष्ट कर डालता है, उसी प्रकार रात्रि-भोजन से तप का महाफल नष्ट हो जाता है।
११. रात्रि भोजन के कुपरिणाम जो मूखे जानकर भी त्याग नहीं करते और रात्रि को भोजन करते हैं, वे अगले भव में निरंतर दुःख पाते हैं और धनहीन होते हैं। वे मनुष्य अति
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