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सुदर्शन-चेरित
१५६ पूर्वक पूजा करते हैं। जय हो तुम्हारी, हे परमात्मन् , आप समस्त अतिशयों से निरन्तर युक्त हैं। [इस कडवक की रचना शशितिलक नामक छंद में हुई है।]
____ इस प्रकार समवसरण के बीच राजा श्रेणिक अपने मस्तक पर हाथ जोड़ कर हर्षित हुए; और प्राचीन काल में भरत के समान अरहंत जिनेश्वर का स्तवन करके नरकोठे में बैठ गये।
१२. वेसठ शलाका पुरुष तत्पश्चात् देवों, मनुष्यों और नागों द्वारा सेवित गौतम गणधर से राजा श्रेणिक ने पूछा-हे देव, इस अवसर्पिणी में कितने तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण हुए, यह बतलाने की कृपा करें। तब वीरप्रभु की आज्ञा से लोगों को आनंद देने वाले गौतम गणधर वर्णन करने और श्रेणिक राजा सुनने लगे। गणधर बोले ऋषभ, अजित, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमति, पद्म, सुपार्थ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, भवरूप वृक्ष के लिये हस्ती के समान विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुंथु, अरह, मल्लि, मदनाशक मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और अन्तिम वर्धमान, ये चौबीस तीर्थकर हुए।
भरत, सगर, मधवानरेन्द्र, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अरह, सुभौम, पद्म, जयसेन, हरिषेण, और ब्रह्मदत्त, ये बारह चक्रवर्ती हुए।
विजय, अचल, धर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नंदी, नन्दिमित्र, राम और पद्म, ये नव बलराम हुए जानो।
त्रिविष्ट, दुविष्ट, स्वयंभू , पुरुषोत्तम, नरसिंह, पुंडरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण, ये नव नारायण हुए।
अश्वग्रीव, तार, मेर, मधुकीट, निसुंभ, प्रहलाद, बलि, रावण और अन्तिम जरासंघ, ये नव प्रतिनारायण हुए।
इन त्रेसठ शलाका पुरुषों के पवित्र चरित्र को अनुक्रम से सुनकर इस मध्यलोक के बीच नितरां वंदनीय संघनायक गौतम गणधर को अपनी राजनीति से सम त भुवनतल को प्रसन्न करनेवाले श्रेणिक राजा ने अपने हाथों को मस्तक पर रखकर नमस्कार किया। इस कडवक की रचना पादाकुलक छंद में हुई है।
इति माणिक्यमन्दि वैविद्य के शिष्य नयनन्दि द्वारा विरचित पंचणमोकार के फल को प्रकाशित करनेवाले सुदर्शन चरित्र में समस्त देवों द्वारा संस्तुत श्री वर्धमान जिनेन्द्र को नमस्कार करके विषय, पट्टन, नगर, राजा, पर्वत व समवसरण में आना और महापुराण संबंधी प्रश्न, इन विषयों का वर्णन करने वाली प्रथम संधि समाप्त ।
संधि ॥१॥