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संधि २
१. राजा श्रेणिक का गौतम गणधर से प्रश्न
गुणों से भरे हुए नाना चरित्रों को सुनकर राजा ने कहा हे भगवन्, पंचनमस्कार रूप पदों का जिसने जैसा फल प्राप्त किया हो, उसे भव्यों को शीघ्र कहिये । इस जनमनोहर वचन को सुनकर श्री गौतम गणधर कहते हैं - हे जगसुन्दर, जिन- भगवान के चरणारविन्दों के भ्रमर, सम्पत्ति में पुरन्दर का भी उपहास करनेवाले, तथा अपने यश से गिरिकन्दराओं को भी पूरित करने वाले है श्रेणिक नरेन्द्र, जिस प्रकार सागर का जल अत्यन्त प्रमाण है, उसी प्रकार पंचणमोकार मंत्र का फल है । यद्यपि बात ऐसी है, तो भी मैं तुमसे कुछ रख नहीं छोडूंगा । मैं तुम्हें संक्षेप में उसका व्याख्यान करता हूँ । दया के घर अरहंत भगवान् ने कहा है कि यह जगत् ऊँचाई में चौदह रज्जू है; अनन्तानन्त आकाश के बीच स्थित है; और तीन वातवलयों से नीचे वेत्रासन, मध्य में झालर और ऊपर मृदंग के नीचे के भाग में वह नरकबिलों से व्याप्त है; मध्य में द्वीपों और समुद्रों से मंडित ; ऊपर कल्पों ( कल्पदेवों की भूमियों) की विभूति से विभूषित है; तथा लोक के अग्र भाग में सिद्धों से उद्भासित है । मध्य लोक में पहला जम्बूद्वीप है, जो लवण समुद्र से वलयाकार घिरा हुआ है । विस्तार में वह एक लाख योजन है; एवं आकार में पूर्ण चन्द्रमा के समान शोभायमान है । उसके मध्य भाग में मन्दर पर्वत कैसा स्थित है, जैसे मानों विधि ने उसे जगत् रूपी घर का स्तंभ बनाकर खड़ा किया हो । जहाँ देवों का मेला हुआ करता है उस मन्दर पर्वत की दक्षिण दिशा में अति मनोहर प्रत्यंचा से मण्डित, धनुषाकार भरतक्षेत्र स्थित है; मानों शाली कोटीश्वर-कुबेर ही स्थित हो ।
वेष्टित होकर मुक्त है । वह आकार से शोभायमान है ।
२.
अंगदेश का वर्णन
ऐसे उस भरत क्षेत्र में मनोज्ञ, ऋद्धि से समृद्ध व सुप्रसिद्ध अंगदेश है । वहाँ के वनों में बड़े-बड़े विशाल अर्जुन वृक्ष परस्पर ऐसी सघनता से भिड़े हुए हैं, जैसे मानों गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन परस्पर युद्ध में भिड़े हों । दुर्योधन और बड़े भीमकाय गज रण में ऐसे गुथे हुए दिखाई देते हैं, जैसे दुर्योधन और भीम गदायुद्ध कर रहे हों । शरभ और भीषण वाणों के झुण्ड ऐसे छाये हुए हैं, जैसे रथों पर चढ़े हुए योद्धाओं की भीषण वाणावलि से आच्छादित हो। इस प्रकार अंगदेश की वनराजि महाभारत सदृश दिखाई देती थी। वहां गोकुलों के