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नयनन्दि विरचित
और गुणवान् दश-दश अन्तकृत् केवली हुए हैं। इनमें से अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ में जो कर्मों का क्षय करने वाले पांचवे अन्तकृत् केवली सुदर्शन हुए उन्हीं का पवित्र चरित्र मैंने प्रारम्भ किया है, उसे सुनिये।
___ इस उत्तम तिर्यग्लोक में सूर्य और चन्द्ररूपी प्रदीपों से शोभायमान विशाल जम्बूद्वीप के दक्षिण दिशाभाग में देवपर्वतों से युक्त, जयश्री की निवासभूमि भरतक्षेत्र है। इसी भरतक्षेत्र में देवकुरु और उत्तरकुरु से भी अधिक विशेषता को प्राप्त सुप्रसिद्ध मगधदेश है, जहाँ जल से पूर्ण मनोहर नदियाँ मन्थरगति से लवण समुद्र की ओर बहती हुई ऐसी शोभायमान होती हैं, जैसे मानों मनोहारिणी युवती रमणियां मन्दगति से अपने सलोने पति के पास जा रही हों।
३. मगध देश का वर्णन इस मगध देश में जैसे पांडु इक्षु वन अति सरस दिखाई देते थे, वैसे ही हर्ष से युक्त कामिनियों के मुख भी। इक्षु दंड उसी प्रकार दले, पीडे व पैरों से मले जाने पर रस प्रदान करते थे, जैसे धूतों के कुल दलन, पीडन और मर्दन से दंडित होकर मुख से लार बहाते हैं। जहां वेश्या मुख से राग आलापती हुई अनुराग पूर्वक नृत्य करती थी, धन्या ( गृहिणी ) भी गान करती हुई सुन्दर नृत्य करती थी व मधुरगीत गाती हुई (धान्य को कूट-कूट कर ) चावल से तुष अलग करती थी ; तथा शुकपंक्ति कलरव करती हुई ( खेतों में या आंगन में सूखते हुए ) धान को निस्तुष करते थे (धान को फुकल कर चावल खा जाते थे )। जहाँ खेत सघन शस्य से युक्त होते हुए अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते, जिस प्रकार कि पथिकों की वियोगिनी स्त्रियां घनी सांसे लेती हुई भी अपनी कुल-मर्यादा का त्याग नहीं करतीं। वहां के उपवन रमग करनेवालों को हर्ष उत्पन्न करते हुए उस भद्रशाल युक्त नन्दनवन का अनुकरण करते थे, जो देवों के मन को आनन्ददायी है। कमलों के कोशों पर बैठकर भ्रमर मधु पोते थे: मधुकरों को यही शोभा देता है। जहां सुन्दर सरोवरों में अपने शोभायमान शरीरों सहित हंसिनी से क्रीडा करते हुए श्रेष्ठ कमलों के लिये उत्कंठित और नाना प्रकार के पत्रों पर स्थित राजहंस उसी प्रकार विलास कर रहे थे, जिस प्रकार कि उत्तम धनुष से सुसज्जित शरीर, समरपंक्ति की क्रीड़ा का संकल्प किये हुए, श्रेष्ठ राज्यश्री के लिये उत्कंठित व नाना भांति के सुभट पात्रों सहित उत्तम राजा शोभायमान होते हैं। ऐसे उस मगध देश में राजगृह नाम का नगर है, जैसे मानों देवों का निलय हो, व जो मानो पृथ्वी रूपी महिला ने अपने मुख पर कपोलपत्र व तिलक रूप निर्माण किया हो।
४. राजगृह नगर वर्णन वह नगर ऊँचे शालवृक्षों तथा उल्लसित लाल सुन्दर कोपलों वाले उद्यानवन के सदृश ऊँचे कोट सहित, रक्तमणि व सुन्दर प्रवालों से चमकता था। वह