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प्रस्तावना
मुनि श्री जिनविजयजीने भी 'अकलङ्क ग्रन्थत्रय' के प्रास्ताविक ( पृ० ५ ) में इसी प्रकारका संदेह व्यक्त किया था ।
जब हमने अकलङ्क ग्रन्थत्रयकी प्रस्तावना में अकलङ्कके ग्रन्थोंके आन्तरिक परीक्षणके आधारसे उनका समय ई० ७२०-७८० तक निर्धारित किया तो हमारे मन में यह शंका तो हुई थी कि - 'जब अकलङ्ककृत सिद्धिविनिश्चयका उल्लेख निशीथ चूर्णिमें है तो निशीथ चूर्णिके रचयिता जिनदासका समय अकलङ्कके बाद होना चाहिये'।' इसलिये मैंने नन्दी चूर्णिके कर्त्ता जिनदास हैं या नहीं इस प्रकारका सन्देह व्यक्त किया था । पर मेरे मन में यह नहीं आया था कि सिद्धिविनिश्चय भी दूसरा हो सकता है; क्योंकि प्रकृत सिद्धिविनिश्चय इतना विशुद्ध दार्शनिक ग्रन्थ है कि उसका उल्लेख श्वेताम्बर आचार्यद्वारा सहज ही दर्शनप्रभावक ग्रन्थों में किया जा सकता है ।
यद्यपि मुनि श्री जिनविजयजीने अकलङ्क ग्रन्थत्रयके प्रास्ताविक में मेरे उस सन्देहका निवारण कर नन्दीचूर्णिके कर्ता जिनदास ही हैं और उनका समय भी ई० ६७६ ही हो सकता है यह प्रतिपादित कर दिया था, फिर भी निशीथचूर्णि में सिद्धिविनिश्चय के उल्लेखकी समस्या खड़ी ही थी ।
किन्तु अब स्त्रीमुक्ति टीका तथा अमोघवृत्तिके उक्त उल्लेखोंसे शिवार्यकृत सिद्धिविनिश्चयका निर्णय हो जानेसे स्थिति सर्वथा स्पष्ट हो जाती है ।
शिवार्य यापनीय हैं; क्योंकि यापनीय शाकटायनने उनके सिद्धिविनिश्चयका स्त्रीमुक्ति के समर्थनमें उद्धरण दिया है । इसीलिये स्त्रीमुक्ति के समर्थक श्वेताम्बर आचार्य द्वारा जिस सिद्धिविनिश्चयका चूर्णिमें दर्शनप्रभावक रूपमें उल्लेख है वह शिवार्यका ही हो सकता है । अतः चूर्णिके उल्लेख के आधारसे अकलङ्कका समय ई० ७ वीं सदी नहीं माना जा सकता, जबकि उनके ८ वीं सदी में होने के अनेक आन्तर और बाह्य प्रमाण मिल रहे हैं | ये शिवार्य' निशीथ चूर्णिके उल्लेख के आधारसे ई० ७ वीं सदी के पहिलेके विद्वान् सिद्ध होते हैं ।
अब मैं उन साधक प्रमाणोंको उपस्थित करता हूँ जिनसे अकलङ्कका समय ई० ८ वीं सदीका उत्तरार्ध सिद्ध होता है
१. दन्तिदुर्ग द्वितीय, उपनाम साहसतुंगकी सभा में अकलङ्कका अपने मुखसे हिमशीतलकी सभा में हुए शास्त्रार्थकी बात कहना' । दन्तिदुर्गका राज्यकाल ई० ७४५ से ७५५ है, और उसीका नाम साहसतुङ्ग था यह रामेश्वर मन्दिर के स्तम्भलेख से सिद्ध हो गया है # ।
२. प्रभाचन्द्रके कथाकोशमें अकलङ्कको कृष्णराज के मन्त्री पुरुषोत्तमका पुत्र बताना " । कृष्णका राज्यकाल ई० ७५६ से ७७५ तक है ।
३. अकलङ्कचरितमें अकलङ्कके शक सं० ७०० ई० ७७८ में बौद्धों के साथ हुए महान् वादका उल्लेख होना' ।
४. अकलङ्ककै ग्रन्थोंमें निम्नलिखित आचार्योंके ग्रन्थोंका उल्लेख या प्रभाव होना -
भर्तृहरि ई० ४ थी ५ वीं सदी कुमारिल ई० ७ वींका पूर्वार्ध धर्मकीर्ति ई० ६२० से ६९० जयराशि भट्ट ई० ७ वीं सदी प्रज्ञाकर गुप्त ई० ६६० से ७२०
( १ ) अकलङ्कग्रन्थत्रय प्रस्तावना पृ० १४-१५ ।
(२) भगवती आराधना के कर्ता शिवार्य और ये आर्य शिवस्वामी या शिवार्य एक ही व्यक्ति हैं या जुदे, यह प्रश्न बड़े महत्त्वका है। पं० नाथूरामजी प्रेमी शिवार्यको यापनीय मानते हैं। देखो - जैन सा० इ० पृ० ७३ ।
(३) पृ० ४६ । (४) पृ० ४९ ।
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धर्माकरदत्त (अर्च) ई०६८० - ७२०
शान्तभद्र ई० ७०० धर्मोत्तर ई० ७००
कर्णकगोमि ई० ८ वीं सदी
शान्तरक्षित ई० ७०५-७६२
(५) पृ० ११ । (६) पृ० ४९ । (७) पृ० २१ - ३६ ।
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