________________ सिद्ध-सारस्वत मङ्गलाशीष विशाल श्रमण परम्परा, विश्व की सनातन परम्परा है। जिसने सम्पूर्ण लोक को शारीरिक अहिंसा का ही नहीं, अपितु वैचारिक अहिंसा का भी उपदेश दिया है। जैन दर्शन कहता है कि - किसी भी प्राणी के प्रति अशुभ विचार लाना भी हिंसा है। हिंसा से बचने के लिए वस्तु-स्वतन्त्रता, कारण-कार्य व्यवस्था, अनेकान्तवाद, स्याद्वाद तथा तत्त्व-विद्या का उपदेश दिया। जिसके उपदेष्टा तीर्थंकर, गणधर, आचार्य परमेष्ठी हुए जिन्होंने अनेक भाषाओं में सर्वहित-दृष्टि से व्याख्यान दिए। साधु-परम्परा के साथ-साथ, विद्वानों ने भी स्व-प्रज्ञा का आगम से शोधन कर जैन वाङ्मय की अपूर्व महती सेवा की है। विद्वानों की दीर्घा में विद्वद्वरेण्य प्रोफेसर श्री सुदर्शनलाल जैन सम्प्रति सरस्वती-आराधना में अग्रगण्य स्थान रखते हैं। संस्कृत-प्राकृत भाषा प्रवीण हैं। अनेकानेक पुरस्कारों से पुरस्कृत हैं। उन्हें यही मङ्गलाशीष है कि वाग्वादिनी की मङ्गलाराधना करते हुए स्व-समाधि की सिद्धि करें। पञ्च परमेष्ठी के पादमूल में भावीकाल में श्रुत-संवेग भावना के फल से श्रुत केवली पद को सुशोभित करें। / / इति शुभं भूयात्।। प. पू. 108 श्री दिगम्बराचार्य विशुद्धसागर मुनि