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श्रावकाचार-संग्रह
हिंसायाः विरतिः प्रोक्ता तथा चानृत्यभाषणात् । चौर्याद्विरतिः ख्याता स्यादब्रह्मपरिग्रहात् ॥५७ एम्यो देशतो विरतिर्गृहियोग्यमणुव्रतम् । सर्वतो विरतिर्नाम मुनियोग्यं महाव्रतम् ॥५८ ननु हिसात्वं किं नाम का नाम विरतिस्ततः । किं देशत्वं यथाम्नायाद् ब्रूहि मे वदतां वर ॥५९ हिंसा प्रमत्तयोगाद्वै यत्प्राणव्यपरोपणम् । लक्षणाल्लक्षिता सूत्र लक्षशः पूर्वसूरिभिः ॥ ६० प्राणाः पञ्चेन्द्रियाणीह वाग्मनोऽङ्गबलत्रयम् । निःश्वासोच्छ्वाससंज्ञः स्यादायुरेकं दशेति च ॥६१
उक्तं च
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पञ्चवि इंदिय पाणा मण बचिकाएण तिष्णि बलपाणा । आणपाणपाणा आउगपाणेण हुंति दह पाणा ॥२६
एकाक्षे तत्र चत्वारो द्वोन्द्रियेयु षडेव ते । त्र्यक्षे सप्त चतुराक्षे विद्यन्तेऽष्टौ यथागमात् ॥ ६२ नवासंज्ञिनि पञ्चाक्षे प्राणाः संज्ञिनि ते दश । मत्वेति किल छद्मस्थैः कर्तव्यं प्राणरक्षणम् ॥६३
यह विरति शब्द सापेक्ष है । सो पहले तो यह बताना चाहिये कि किनका त्याग करना चाहिये, कितना त्याग करना चाहिये और कितनेका त्याग करना चाहिये। यह सब आज बतलाना चाहिये ॥५६॥ ग्रन्थकार कहने लगे कि हिंसाका त्याग करना चाहिये, झूठ बोलनेका त्याग करना चाहिये, चोरीका त्याग करना चाहिये, अब्रह्म या कुशीलका त्याग करना चाहिये और परिग्रहका त्याग करना चाहिये ||१७|| इन पाँचों पापोंका एकदेश त्याग करना सो गृहस्थोंके धारण करने योग्य अणुव्रत कहलाता है तथा इन्हीं पाँचों पापोंको पूर्णरीतिसे त्याग करना सो मुनियोंके धारण करने योग्य महाव्रत कहलाता है ॥ ५८ ॥ यह सुनकर फामन फिर पूछने लगा कि हिंसा किसको कहते हैं, विरति शब्दका क्या अर्थ है और एकदेश किसको कहते हैं । हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ ! आचार्य परम्परासे चला आया इनका लक्षण मुझे बतलाइये ॥ ५९ ॥ | इस प्रश्नके उत्तर में ग्रन्थकार कहने लगे कि प्रमादके योगसे प्राणोंका व्यपरोपण करना, कषायके निमित्तसे प्राणोंका वियोग करना हिंसा है । पहलेके आचार्योंने शास्त्रोंमें इस हिंसाका स्वरूप अनेक प्रकार बतलाया है ||६०|| स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचनबल और कायबल ये तीन बल, श्वासोच्छ्वास और आयु ये दश प्राण कहलाते हैं ||६१ ||
कहा भी है- पाँचों इन्द्रियाँ प्राण हैं, मन, वचन, काय ये तीनों बल प्राण हैं, श्वासोच्छ्वास प्राण है और आयु प्राण है । इस प्रकार दस प्राण हैं ||२६||
इन प्राणोंमेंसे वृक्षादिक वा पृथ्वीकायादिक एकेन्द्रिय जीवोंके एक स्पर्शन इन्द्रियप्राण, दूसरा कायबलप्राण, तीसरा श्वासोच्छ्वासप्राण और चौथा आयुप्राण इस प्रकार चार प्राण होते हैं । लट, शंख आदि दोइन्द्रिय जीवोंके छह प्राण होते हैं । स्पर्शन रसना दो इन्द्रियप्राण, कायबल वचनबल दो बलप्राण, आयु और श्वासोच्छ्वास ये छह प्राण होते हैं। चीटी चींटा खटमल आदि तेइन्द्रिय जीवोंके सात प्राण होते हैं । स्पर्शन रसना घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ, कायबल वचनबल ये दो बल, आयु और श्वासोच्छ्वास । भौंरा, मक्खी आदि चोइन्द्रिय जीवोंके आठ प्राण होते हैं। स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु ये चार इन्द्रियां, कायबल वचनबल, आयु और श्वासोच्छ्वास | पानीके सर्प आदि असेनी पंचेन्द्रिय जीवोंके नौ प्राण होते हैं । स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु कर्ण ये पाँचों इन्द्रियाँ, कायबल, वचनबल, आयु और श्वासोच्छ्वास । मनुष्य, स्त्री, गाय, भैंस, कबूतर, चिड़िया आदि सेनी पंचेन्द्रिय जीवोंके मन भी होता है इसलिये उनके दशों प्राण होते हैं । इस
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