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श्रावकाचार-संग्रह माहेन्द्रे च तथा ब्राह्मे ब्रह्मोत्तरलान्तवे । कापिष्ठे तथा शुक्रे महाशुक्र तथा ध्र वम् ॥२२७ शतारे च सहस्रारे क्रमाद् द्वौ द्वौ च वर्धते । आनते प्राणत सप्त चारणे चाच्युते तथा ॥२२८ स्वर्गे च प्रथमेश्वभ्रे सद्मावासे निरन्तरे । जघन्यायुरिदं प्रोक्तमयुतं पूर्वसूरिभिः ॥२२९ ज्योतिर्देवे जघन्यायुः पल्यैकाष्टमांशकम् । कथितं तु नरेन्द्रस्य यतीशैजिनभाषितम् ॥२३०
एकेन्द्रियाणां विकलेन्द्रियाणां तिर्यनराणां सकलेन्द्रियाणाम् ।
एषां जघन्यायुः कथितं जिनेन्द्ररन्तमुंहतं खलु हे नराधिप ॥२३१ उत्कृष्टं पद्मनालस्य मत्स्ये सम्मूच्छिमस्य च । योजनानां सहस्रक दीर्घत्वं जिनमाषितम् ॥२३२ भ्रमरो योजनैकं च कम्बुादशयोजनः । क्रोशत्रयं तथा गोम्या उच्छ्यं हि जिनागमे ॥२३३ त्रिकोशं च द्विकोशं च क्रोशैकमुच्छ्रयं तथा। भोगभूमिमनुष्याणां कथितं पूर्वसूरिभिः ॥२३४ कर्मभूमिमनुष्याणामुच्छ्र्य शतपञ्चकम् । पञ्चविंशधनुर्युक्तं पूर्वकोटिसमायुषाम् ॥२३५ ज्योतिषां सप्तचापानि युगले सप्तकरोन्नतम् । द्वितीये युगले प्रोक्तं षट्करं जिनभाषितम् ॥२३६ ब्रह्म ब्रह्मोतरे लान्ते कापिष्ठे करपञ्चकम् । उन्नतिर्देवदेहानां कथिता पूर्वसूरिभिः ॥२३७ शुक्रऽथ च महाशुक्र शतारे च सहस्रके । उन्नतिश्चतुरो हस्ता युग्मे ह्यर्धाधहीनकाः ॥२३८ माहेन्द्र में ग्यारह पल्य, ब्रह्ममें तेरह पल्य, ब्रह्मोत्तरमें पन्द्रह पल्य, लान्तवमें सत्तरह पल्य, कापिष्ठमें उन्नीस पल्य, शुक्रमें इक्कीस पल्य, महाशुक्रमें तेवीस पल्य, शतारमें पच्चीस पल्य और सहस्रारमें सत्ताईस पल्य देवियोंकी उत्कृष्ट आयु होती है। आगेके स्वर्गमें सात सात पल्यकी बढ़ती हुई आयु है । अर्थात् आनत स्वर्गमें चौंतीस पल्य, प्राणत स्वर्गमें इकतालीस पल्य, आरणस्वर्गमें अड़तालीस पल्य और अच्युत स्वर्गमें देवियोंकी उत्कृष्ट आयु पचपन पल्यकी होती है ॥२२६-२२८॥ प्रथम स्वर्गमें, प्रथम नरकमें भवनवासियों में (?) पूर्वसूरियोंने जघन्य आयु अयुत प्रमाण (?) कही है ॥२२९॥ ज्योतिषी देवोंकी जघन्य आयु एक पल्यका अष्टम भाग यतीश्वर गणधर देवने राजाको जिन-भाषित आयुका प्रमाण कहा ॥२३०॥ हे नरेश, भगवान् जिनेन्द्र देवने एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यच और मनुष्य इन सबकी जघन्य आयु अन्तमुहूर्त प्रमाण कहो है ॥२३॥
एकेन्द्रिय पद्मनाम कमलकी और सम्मच्छिम मत्स्यकी उत्कृष्ट शरीरकी दीर्घता (अवगाहना) जिनदेवने एक हजार योजन कही है ।।२३२।। चतुरिन्द्रिय भ्रमरको शरीरदीर्घता एक योजन द्वीन्द्रिय शंखकी बारह योजन, और त्रीन्द्रिय गोमीकी तीन कोश दीर्घता जिनागममें कही है ।।२३३।। उत्कृष्ट भोगभूमिके मनुष्योंकी ऊँचाई तीन कोश, मध्यम भोगभूमिके मनुष्योंकी दो कोश और जघन्य भोगभूमिके मनुष्योंकी एक कोश ऊंचाई पूर्वाचार्योंने कही है ॥२३४|| कर्म भूमिके मनुष्योंके शरीरकी ऊंचाई पांच सौ पच्चीस धनुष और एक पूर्वकोटिकी आयु वाले विदेह क्षेत्रके मनुष्योंके भी शरीरकी ऊंचाई पांच सौ पच्चीस धनुष कही गई है ॥२३५।। ज्योतिषी देवोंके शरीरकी ऊंचाई सात धनुष, प्रथम स्वर्ग युगलमें सात हाथ, और दूसरे स्वर्ग-युगलमें छह हाथ शरीरको ऊंचाई जिनदेवने कही है ।।२३६।। ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ इन चार स्वर्गोंके देवोंके शरीरकी ऊंचाई पांच हाथ पूर्वाचार्योंने कही है ।।२३७।। आगे आधा-आधा हाथ कम ऊंचाई कही १. यह उल्लेख प्रचलित परम्परासे विरुद्ध है। क्योंकि प्रथम स्वर्ग में देवोंकी जघन्य आयु एक पल्यसे कुछ
अधिक कही गई है, प्रथम नरकमें जघन्य आयु दश हजार वर्ष कही है । और यही भवन वासियों और व्यन्तरोंको कही गई है ।-अनुवादक
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